________________ 42. प्राप्तः षष्ठं गुणस्थानं भवदुर्गाद्रिलंघनम्। लोक संज्ञारतो न स्यान्मुनि लोकोत्तर स्थितिः।।। / / -लोकसंज्ञात्याग (ज्ञानसार) 43. अपुनबंधनकस्यापि या क्रिया शमसंयुता। चित्रः दर्शन भेदेन धर्मविघ्न क्षयाय सा।।5।। -अध्यात्मस्वरूप अधिकार (अध्यात्मसार) 44. तत्प्रकृत्येन, शेषस्य केचिदेना प्रचक्षते। आलोचनाद्यभावेन तथाभोगसङ्गनाम्।।42 / / -योगबिन्दु, हरिभद्र 45. क्षुद्रो लोभरतिर्दीनो मत्सरी भयवान् शठः। अज्ञो भवाभिनन्दी स्यान्निष्फलरभ संगतः।।6।। -अध्यात्मस्वरूप अधिकार (अध्यात्मसार) -योगबिन्दु, हरिभद्रसूरि, गाथा 87 46. आहारोपधिपूजादि गौरव प्राप्ति बंधतः। भवाभिनंदी या कुर्यात क्रिया साध्यात्म वैरिणी।। -अध्यात्मसार 47. दसविहे धम्मे पण्णत्ते जहा। ग्रामधम्मे, नयर धम्मे, रट्ठ धम्मे, पाखंड धम्मे, कुल धम्मे, गण धम्मे, सुय धम्मे, चस्ति धम्मे, अत्थिकाय धम्मे।। -स्थानांग सूत्र, 10/78, पृ. 31. 48. सदाचार एवं बौद्धिक विमर्श, डॉ. सागरमल जैन 49. योगशास्त्र, हेमचन्द्राचार्य, प्रथम प्रकाश, गाथा 47-56 50. प्रवचन सारोद्धार, 239 51. दसविहे समणधम्मे पण्णत्ते तं जहा खंती, मुत्ती अज्जवे मद्दवे, लाघवे सच्चे संजमे . तवे चियाए बंभचेर वासे। -स्थानांग, 10/712; आचारांग, 1/615; समवायांग, 10/61 52. खंती मद्दव अज्जव, मुत्ती तव संजमे अ बोधव्वे। सच्चं सोअं आर्किचणं च बंभ च जई धम्मो।।2।। -नवतत्त्व प्रकरण -श्रीमद् भागवत, 4/49 (धर्म की पत्नियां एवं पुत्रों के रूप में इन सद्गुणों का उल्लेख है।) 53. अध्यात्म निर्मल बाह्य व्यवहारेपबर्हितम्।।3।। . -अध्यात्मोपनिषद 54. धम्मो मंगल मुक्किठं अहिंसा संजमो अ तओ। देवाविं तं नमसंति जस्स धम्मे सयामणो।।7।। -दशवैकालिक सूत्र, प्रथम अध्ययन, गाथा-1 55. दानं च शीलं च तपश्च भावोधर्मश्चतुर्था जिनबांधवेन। निरुपितो यो जगतो हिताय समानस मे रमताभजस्त्रम् / / -126, दसवीं धर्मभावना, शांत सुधारस 56. एवं ज्ञानक्रियास्वरूपमध्यात्म व्यवतिष्ठते। एतत् प्रवर्धमानं स्वान्निर्दग्भाचार शालिनाम्।।29 / / -अध्यात्मसार 115 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org