________________ 29. रूढयर्थनिपुणास्त्वाहुश्चितं मैत्र्यादिवासितम्। अध्यात्म निर्मल बाह्यव्यवहारेपबृंहितम् / / 3 / / -अध्यात्मोपनिषद् 30. अध्यात्मवैशारदी (मुनि यशोविजय) 31. भिक्षुन्यायकर्णिका, 5/7 32. (अ) नै सत्ये समुपाश्रित्य, बुद्धानां धर्म देशना / लोक संवति सत्यं च, सत्यं च परमार्थतः / / -माध्यमिक कारिका, 24/8 सम्यग्मृषा दर्शनलब्धभावं रूपद्रयं बिभ्रति सर्वभावाः। सम्यग्दृशो ये विषयः स तत्वं मृषादृशा संवृति सत्वमुक्तम् / / मृशादृशोपि द्विविधास्त इष्टा, दीप्तेन्द्रिया इन्द्रियादोषवन्तः। दुष्टिन्द्रियाणां किल बोध इष्टः सुस्थेन्द्रिज्ञानमपेक्ष्य मिथ्या।। -माध्यमिक कारिका, 6/23, 24 33. छान्दोग्योपनिषद्, 6/8/7; शांकरभाष्य, 661 34. अभिन्नकतृकर्मादिगोचरो निश्चयोथवा। व्यवहारः पुनर्देव निर्दिष्टस्ताद्विलक्षण।।7।। -ध्यानस्तव, भास्करनन्दी 35. ज्ञानस्य भक्तेस्तपसः क्रियायाः प्रयोजनं खल्विदमेक मेव। चंतः समाधौ सति कर्म लेपविशोधनादात्मगुणप्रकाशः।।3।। -अध्यात्म तत्त्वलोक, न्यायविजय 36. चतुर्थेपि गुणस्थाने शुश्रुषाघा क्रियोचिना। अप्राप्तस्वर्णभूषाणां रजताभरण यथा।। -अध्यात्मसार 37. अहिगारिनो उपाएण, होई सिद्धि समत्थवत्थुम्मि। ... फल पगरिस भावओ विसेसओ जोगमग्गम्मि।।4।। -योगशतक 38. गलन्नयकृत भ्रान्तिर्यः स्याद्विश्रान्तिसम्मुखः। ... स्याद्वाद विशद लोकः स एवाध्यात्मभाजनम् / / 5 / / -अध्यात्मोपनिषद् 39. पावं न तिव्वभावा कुणई, ण बहुभण्णई भवं घोरं। उचियट्ठि च सेवई, सव्वत्थवि अपुणबंधो ति।।13।। -योगशतक 40. तरुण सुखी स्त्रीपरिवर्यो रे, चतुर सुणे सुरगीत। .. तेहथी रागे अतिघणे रे, धर्मसुण्या नी रीत रे। प्राणी।। भूख्यो अटवी उतर्यो रे, जिम द्विज घेवर चंग। इच्छे तिम जे धर्म ने रे, तेहिज बीज लिंग रे।।प्राणी।। -सम्यक्त्व के 67 बोल की सज्झाय 41. द्वीप पयोधौ फलिन मरौ व दीपं निशाया शिखिनं हिमे चे। कलौ करालै लभते दुरापमध्यातमतत्वं बहुभागधेयः।।5।। -अध्यात्मतत्त्वलोक, न्यायविजय 114 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org