________________ विशेष या भेदों की उपेक्षा करके मात्र सामान्य लक्षणों या अभेद के आधार पर जब कोई कथन किया जाता है तो वह संग्रहनय कथन माना जाता है। संग्रहनय का वचन संगृहित या पीड़ित अर्थ का प्रतिपादक है, जैसे-भारतीय गरीब हैं, यह कथन व्यक्तियों पर लागू न होकर सामान्य रूप से भारतीय जनसमाज का वाचक होता है। जीव, द्रव्य का एक भेद है। जीव में जीवत्वसामान्य अपर सामान्य है। इस प्रकार जितने भी अपर सामान्य हो सकते हैं, उन सबका ग्रहण करने वाला नय अपर संग्रह है। संग्रहनय हमें संकेत करता है कि समष्टिगत कथनों के तात्पर्य को समष्टि के सन्दर्भ में ही समझने का प्रयत्न करना चाहिए और उसके आधार पर समष्टि के प्रत्येक सदस्य के बारे में कोई निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए। , व्यवहारनय-संग्रहनय द्वारा गृहित अर्थ को विधि पूर्वक अवहरण (विभाग) करना व्यवहार नय है। व्यवहारनय को हम उपयोगितावाद दृष्टि कह सकते हैं। लौकिक अभिप्राय समान उपचार बहुल, विस्तृत अर्थ विषयक व्यवहार नय है।" केवल सामान्य के बोध से या कथन से हमारा व्यवहार नहीं चल सकता है। व्यवहार के लिए हमेशा भेदबुद्धि का आश्रय लेना पड़ता है। वैसे जैन आचार्यों ने इसे व्यक्तिप्रधान दृष्टिकोण भी कहा है। जो अध्यवसाय विशेष लोगों के व्यवहार में उपायभूत है, वह व्यवहारनय कहलाता है। जैसे-तेल के घड़े में लड्डू रखे हैं। यहाँ तेल के घड़े का अर्थ ठीक वैसा नहीं है, जैसा कि मिट्टी के घड़े का अर्थ है। यहाँ तेल के घड़े का अर्थ वह घड़ा है, जिसमें पहले तेल रखा जाता था। ऋजुसूत्र नय-भेद या पर्याय की विवक्षा से जो कथन किया जाता है, वह ऋजुसूत्र नय का कथन होता है। इसे बौद्ध दर्शन का समर्थक बताया जाता है। यह नय भूत और भविष्य की उपेक्षा करके * केवल वर्तमान स्थितियोग को दृष्टि में रखकर कोई कथन करता है। उदाहरण के लिए भारतीय व्यापारी न्यायी नहीं हैं-यह कथन केवल वर्तमान सन्दर्भ में ही सत्य हो सकता है। इस कथन के आधार पर हम भूतकालीन एवं भविष्यकालीन व्यापारियों के चरित्र का निर्धारण नहीं कर सकते। ऋजुसूत्र हमें यह बताता है कि उसके आधार पर कथित कोई भी वाक्य अपने तात्कालीन सन्दर्भ में सत्य होता है। अन्यकालीन सन्दर्भो में नहीं। शब्द नय-काल, कारक, लिंग, संख्या आदि के भेद से अर्थ-भेद मानना शब्द नय है। शब्द नय हमें बताता है कि शब्द नय का वाच्यार्थ कारक, लिंग, उपसर्ग, विभक्ति, क्रियापद आदि के आधार पर बदल जाता है, जैसे-तटः, तटी, तटम्-इन तीन शब्दों के अर्थ समान होने पर भी तीनों पदों से वाच्य, नदी, तट अलग-अलग हैं, क्योंकि समानार्थक होने पर भी तीनों शब्दों में लिंग भेद हैं। काल के भेद से - काशी नगरी थी और काशी नगरी है। कारक भेद से - मोहन को, मोहन के लिए, मोहन से आदि। लिंग भेद से - शब्द नय स्त्रीलिंग से वाच्य अर्थ का बोध पुल्लिंग से नहीं मानता। स्त्रीलिंग से वाच्य अर्थ का बोध नपुंसक लिंग से नहीं मानता। संख्या के भेद - एकत्व, द्वित्व और बहुत्व। दूसरा उदाहरण, जैसे-मैं कश्मीर गया था और हम कश्मीर जा रहे हैं। इन दोनों वाक्यों में भूतकाल में एवं वर्तमान काल में कश्मीर जाने की बात कही है। 80 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org