________________ 65. इमं ग्रंथं कृत्वां विषयविष विक्षेप कलुषं फलं नान्यद् याचे किमपि भवभूति प्रभृतिकम्। इहाऽमूत्रापि स्तान्मय मतिरनेकान्त विषये, ध्रुवत्येतद् याचे तदिद्मनुयाचध्वमपरे।। -अनेकान्त व्यवस्था, उपाध्याय यशोविजय, प्रशस्ति, श्लोक-13 66. ज्ञानसार उपाध्याय यशोविजय ज्ञानाष्टक, अष्टक-5, पृ. 52, श्लोक-2 67. दशवैकालिक मूलसूत्र, चतुर्थ अध्ययन, श्लोक 10-4/10 68. सूत्रकृतांग सूत्र, 1/12/11 69. सम्बोधसितरि प्रकरण, गाथा-3 70. नमिजिन स्तवन, उपाध्याय यशोविजय, आनन्दघन ग्रन्थावली 71. वही 72. ज्ञानसार उपाध्याय यशोविजय पूर्णाष्टक-1, गाथा नं. 1, द्वितीय पद 73. यशोविजय स्मृतिग्रंथ, मुनि यशोविजय, पृ. 47 74. स्याद्वाद की सर्वोत्कृष्टता, यशोविजय 75. तत्वार्थ सूत्र, उमास्वाति, पंच अध्याय, सूत्र-29 76. वही, सूत्र-30 77. वही, सूत्र-31 78. ऋग्वेद, मं. 10, सूत्र-129 में 1 79. कठोपनिषद्, 2/20 80. इशावास्योपनिषद्, 7/3/1/7 82. मनुस्मृति, 10/73 83. महाभारत आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता), अध्याय-35, श्लेक-17 84. षड्दर्शन समुच्चय टीका 85. वही 86. गुरुतत्व विनिश्चय, उपाध्याय यशोविजय, श्लोक-1 87. नयरहस्य, उपाध्याय यशोविजय, श्लोक-1 88. नयोपदेश, उपाध्याय यशोविजय, श्लोक-1 89. तिऽन्वयोक्ति उपाध्याय यशोविजय, श्लोक-1 90. समुद्रवाहन संवाद, उपाध्याय यशोविजय, श्लोक-1 91. आश्रम भजनावलि, महात्मा गांधी 70 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org