________________ 40. यत्कीर्ति स्फूर्ति गानं वहित सुरवधु वृन्द कोलाहलेन, प्रक्षुब्ध स्वर्गसिंधौः पतित जलभरेः क्षालित सैव्यमेति। अश्रान्त भ्रान्त क्रान्त ग्रह गण किरणैस्तापवान् स्वर्णरोलो, भ्राजन्ते ते मुनीन्द्रा नयविजय बुधाः सज्जन व्रातधुर्या / / 15 / / 41. ज्ञानसार महोपाध्याय यशोविजय पूर्णाष्टक, गाथा-4 42. ज्ञानसार महोपाध्याय यशोविजय निःस्पृहाष्टक, गाथा-3 43. ज्ञानसार महोपाध्याय यशोविजय निर्लेपाष्टक, गाथा-2 44. ज्ञानसार महोपाध्याय यशोविजय आत्मप्रशंसात्यागाष्टक, गाथा-5 45. नयचक्र उपाध्याय यशोविजय, पृ. 1 (आ.स.) '46. अध्यात्म मत परीक्षा उपाध्याय यशोविजय, पृ. 1, श्लोक-1 47. गुरुतत्त्व विनिश्चय उपाध्याय यशोविजय, उल्लास-1, श्लोक-9, पृ. 6 48. न्यायालोक उपाध्याय यशोविजय श्लोक नं. 5, पृ. 15 49. गुरुतत्त्व विनिश्चय उपाध्याय यशोविजय, श्लोक-1, पृ. 2 50. यशोविजयकृत अष्टपदी, उद्धृत-आनन्दघन ग्रंथावली, पृ. 11-12 51. यशोविजयकृत अष्टपदी, महोपाध्याय यशोविजय, पद-4 52. शांतिजिन स्तवन आनन्दघन चौबीसी 53. वही 54. गुरुतत्त्व विनिश्चय, भाग-1, उपाध्याय यशोविजय प्रारम्भ में 55. न्यायालोक उपाध्याय यशोविजय अंत में 56. यशोविजय स्मृतिग्रंथ, उपाध्याय यशोविजय, पृ. 11 57. प्रतिमाशतक की टीका, उपाध्याय यशोविजय 58. द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका, उपाध्याय यशोविजय, 20वीं द्वात्रिंशिका 59. अध्यात्मोपनिषद्, उपाध्यायय यशोजिय, 9/69 60. सिद्धहेम शब्दानुशासन व्याकरण, आचार्य हेमचन्द्रसूरि, सूत्र 1-12 . 61. अन्ययोगवच्छेद द्वात्रिंशिका, हेमचन्द्रसूरि, श्लोक नं. 30 62. इमां समक्ष प्रतिपक्षसाक्षिणा, मुदर घोषामयघोषणा ब्रुवे न वीतरागात् परमस्ति देवतं, न चाप्येनेकान्तमृते नयस्थितिः।।28।। -अयोगवच्छेदक द्वात्रिंशिका 63. न्याय खण्डखाद्य, उपाध्याय यशोविजय, श्लोक-42 64. उद्धाविव सर्व सिन्धवः, समुदीर्णास्त्वयि सर्वदृष्ट्यः / न च तासु भवानुदीक्ष्यते, प्रविभक्तासु सिरित्सिवोदधिः।। -द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका, चतुर्थ द्वात्रिंशिका, श्लोक 15 69 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org