________________ 3. यशोविजय स्मृतिग्रंथ, सम्पादकीय निवेदन, पृ. 19 4. प्रभावक चरित्र, श्लोक-6 5. जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, मोहनलाल दुलीचंद देसाई, पृ. 625 6. जैन तर्क भाषा का हिन्दी परिचय, पं. सुखलाल संघवी, पृ. 1 7. सुजसेवली भाष, सार्थ का आदिवाच्य 8. यशोविजय स्मृतिग्रंथ, पुण्यविजय का लेख, पृ. 17 9. एजन, पृ. 18 10. न्यायखण्डखाद्य की प्रशस्ति का अन्तिम पद्य 11. यशोदोहन, मुनि यशोविजय, खण्ड-1, प्रकरण-1, पृ. 4 12. अनेकान्त व्यवस्था की प्रशस्ति के अन्तिम पद्य में श्रीपद्मविजयानुजः ऐसा उल्लेख है। ये भी दोनों अर्थ का सूचन करते हैं। इस संबंध में देखें-वाचक यशोविजयगणि मोटा के एमना सोदर-पद्मविजय, जैन धर्म प्रकाश, पृ. 73, अंक-11, मुनि यशोविजय 13. 1, 2, सुजसवेली सार्थ, पृ. 4, टिप्पणी-12 14. यशोदोहन, मुनि यशोविजय, खण्ड-1, पृ. 5 15. सुजसवेली भाष, मुनि कान्तिविजय . 16. श्री हीरान्वय दिनकृति प्रकृष्टोपाध्यायकित् भुवन गीत कीर्ति वृन्दाः षट्कीर्य दृढपरिरंभ भाग्य प्रसाद भाज! कल्याणोत्तर विजयाभिधा बभूवः।।4।। तच्छिष्या प्रतिगुणधामे हेमसूरेः श्री लाभोत्तर विजयाभिधा बभूवु! श्री जित्तोतर विजयभिधान श्री नयविजयौ तदीयशिष्यौ।।5।। तदीय चरणाम्बुज श्रयणाविस्फुरद भारती प्रसाद सुपरीजित प्रवर शास्त्र रत्नोच्चयैः। जिनागम विवेचने शिवसुखार्थिना श्रेयसे यशोविजय वाघकैश्यमकारि तत्त्वश्रमः / 16 / / (प्रतिमाशतक टीकाकर्तु प्रशस्ति, उपाध्याय यशोविजय) इति जगद्गुरु बिरुदधारीश्री हीरविजयसूरीश्वर शिष्य षट्तर्क विद्या विशारद महोपाध्याय श्री कल्याणविजयजी गणि शिष्य शास्त्रज्ञ तिलक पण्डित श्री लाभविजयजी गणि शिष्य मुख्य पण्डित जीतविजय गणि सतीथ्यालंकार पण्डित श्री नयविजय गणि चरण कनच्झरीक पण्डित पद्मविजय गणि सहोदर न्याय विशारद महोपाध यायजी यशोविजयजी गणि प्रणीतं समाप्तमिदं मध्यात्मोपनिषद्-प्रकरण-1, अध्यात्मोपनिषद्, उपाध्याय यशोविजयकृत 17. मौन एकादशी स्तवन, ढाल-12, कड़ी-5, पृ. 195 18. उन्होंने प्रमेय मंजुषा का संशोधन किया था। 19. सीमंधर स्वामी के विनतीरूप 350 गाथा का स्तवन, ढाल-17, कड़ी-11 20. जम्बूस्वामी का रास (अन्तिम ढाल), मौन एकादशी स्तवन, ढाल-12, कड़ी-4 67 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org