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________________ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000oooot Joooo00000000000000000000000000000000000000000000000 00000000000000000000000000000000000000000 00000000000000000000000000000000000 समीप चूहों का रहना बिल्कुल योग्य नहीं, खतरनाक है। इसी तरह स्त्रियों के रहने के स्थान के समीप ब्रह्मचारियों का रहना भी उनके लिए योग्य नहीं है। मूल : हत्थपायपडिछिन्नं, कन्ननासविगप्पियं। अवि वाससयं नारिं, बंभयारी विवज्जए||६|| छाया: हस्तपादप्रतिच्छिन्ना, कर्णनासाविकल्पिताम्। वर्षशतिकामपि नारी, ब्रह्मचारी विवर्जयेत।।६।। अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (हत्थपायपडिछिन्न) हाथ पांव छेदे हुए हों, (कन्ननासविगप्पिअं) कान, नासिका, विकृत आकार के हों ऐसी (वाससय) सौ वर्ष वाली (अवि) भी (नारिं) स्त्री का संसर्ग (बंभयारी) ब्रह्मचारी (विज्जए) छोड़ दें। भावार्थ : हे गौतम! जिसके हाथ पैर कटे हुए हों, कान नाक खराब आकार वाले हों और अवस्था में चाहे सौं वर्ष वाली हो, तो भी ऐसी स्त्री के साथ संसर्ग परिचय करना, ब्रह्मचारियों के लिए परित्याज्य है। मूल: अंगपच्चंगसंठाणं, चारुल्लविअपेहिये। इत्थीणं तं न निज्झाए, कामरागविवड्ढणं||७|| छाया: अंगप्रत्यंगसंस्थानं, चारुल्लपितपेक्षितम्। स्त्रीणां तन्न निध्यायेत्, कामरागविवर्धनम्।।७।। अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! ब्रह्मचारी (कामरागविविड्डणं) काम राग आदि को बढ़ाने वाले (इत्थीणं) स्त्रियों के (तं) तत्संबंधी (अंगपच्चंगसंठाणं) सिर नयन आदि आकार प्रकार और (चारुल्लविअपेहिअं) सुन्दर बोलने का ढंग एवं नयनों के कटाक्ष बाण की ओर (न) न (निज्झाए) देखे। भावार्थ : हे गौतम! ब्रह्मचारियों को कामराग बढ़ाने वाले जो स्त्रियों के हाथ पांव, आंख, नाक, मुँह आदि के आकार प्रकार हैं उनकी ओर एवं स्त्रियों के सुन्दर बोलने के ढंग तथा उनके नयनों के तीक्ष्ण बाणों की ओर कदापि न देखना चाहिए। मूल: णोरक्खसीसु गिज्झिज्जा, गंडवच्छासुऽणेगाचित्तासु। जाओ पुरिसं पलोभित्ता, खेलंति जहा वादासेहिं|lll 0000000000000000000 00000000000000000000000000000000oop निर्ग्रन्थ प्रवचन/936 Mo00000000000000000a Jals Education International boo00000000000000617 www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only opersonal & Private Use
SR No.004259
Book TitleNirgranth Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherGuru Premsukh Dham
Publication Year
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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