________________ 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 0000000000000000000000000000000000000000000000000000061 100000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 500000000000000000 पडिमा में सात महीने तक सचित्त भोजन न खाने का अभ्यास करे। आठवीं पडिमा में आठ महीने तक स्वतः कोई आरंभ न करे। नौवीं पडिमा में नौ महीने तक दूसरों से भी, आरम्भ न करवावें / दशमी पडिमा में दश महीने तक अपने लिए किया हुआ भोजन न खावे / ग्यारहवीं पडिमा में ग्यारह महीने तक साधु के समान क्रियाओं का पालन वह करता रहे। शक्ति हो तो बालों का लोच भी करें, नहीं शक्ति हो तो हजामत करवा लें, खुली दण्डी का रजोहरण बगल में रखें / मुंह पर मुंहपत्ती बंधी हुई रखें और 42 दोषों को टाल कर अपने ज्ञाति वालों के यहां से भोजन लावें, इस प्रकार उत्तरोत्तर गुण बढ़ाते हुए प्रथम पडिमा में एकान्तर तप करे और दूसरी पडिमा में दो महीने तक बेले बेले पारणा करे। इसी तरह ग्यारहवीं पडिमा में ग्यारह महीने तक ग्यारह ग्यारह उपवास करता रहे / अर्थात् एक दिन भोजन करे फिर ग्यारह उपवास करें। फिर एक दिन भोजन करे। यों लगातार ग्यारह महीने तक ग्यारह का पारणा करे। 4. इस प्रकार गृहस्थ-धर्म पालते पालते अपने जीवन का अंतिम समय यदि आ जाए तो अपच्छिमा मरणंतिआ संलेहणा झूसणाराहणा-सब सांसारिक व्यवहारों का सब प्रकार से आजन्म के लिए परित्याग करके संथारा (समाधि) धारण कर ले और अपने त्याग धर्म में किसी भी प्रकार की दोषापत्ति भूल से यदि हो गई हो, तो आलोचक के पास उन बातों को प्रकाशित कर दे। जो वे प्रायश्चित उसके लिए दें उसे स्वीकार कर अपनी आत्मा को निर्मल बनावें फिर प्राणी मात्र पर यों मैत्री भाव रखें। मूल : खामेमि सब्वे जीवा, सब्बे जीवाखमंतु मे। मित्ती में सबभूएसु, वेरं मज्झंण केणई||५| छायाः क्षमयामि, सर्वान् जीवान्, सर्वे जीवा क्षमन्तु मे। मैत्री में सर्वभूतेषु वैरं मम न केनापि।।५। अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (सव्वे) सब (जीवा) जीवों को (खामेमि) क्षमाता हूँ। (मे) मुझे (सव्वे) सब (जीवा) जीव (खमंतु) क्षमा करो (सव्व भूएसु) प्राणी मात्र में (मे) मेरी (मित्ती) मैत्री भावना है (केणइ) किसी के भी साथ (मज्झं) मेरा (वरं) वैर (न) नहीं है। भावार्थ : हे गौतम! उत्तम पुरुष जो होता है वह सवैद वसुधैव कुटुम्बकम् जैसी भावना रखता हुआ वाचा के द्वारा भी यों बोलेगा कि 0000000000000000000000000000000000000000000000000 नै निर्ग्रन्थ प्रवचन/83 0000000000000ootli Jain Education International 000000000 woww.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only