________________ 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 1000 1000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 गये हैं व जिनका "दर्शन सिद्धान्त" दूषित है, उनकी संगति का त्याग करता हो, वही सम्यक्त्व पूर्वक श्रद्धावान है। मूल : कुप्पवयणापासंडी, सब्वे उम्मग्गपट्ठिआ। सम्मग्गंतु जिणक्खायं, एस मग्गे हि उत्तमे||३|| छाया: कुप्रवचनपाषाण्डिनः, सर्व उन्मार्गप्रस्थिताः / सन्मार्ग तु जिनाख्यातं, एष मार्गो ह्यूतमः / / 3 / / अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (कुप्पवयणपासंडी) दूषित वचन कहने वाले (सव्वे) सभी (उम्मग्गपट्ठिआ) उन्मार्ग में चलने वाले होते हैं। (त) और (जिणक्खायं) श्री वीतराग का कहा हुआ मार्ग ही (सम्मग्ग) सन्मार्ग है। (एस) यह (मग्गे) मार्ग (हि) निश्चय रूप से (उत्तमे) प्रधान है। ऐसी जिसकी मानता हैं वही सम्यक्त्व पूर्वक श्रद्धावान है। भावार्थ : हे गौतम! जो हिंसामय दूषित वचन बोलने वाले हैं वे सभी उन्मार्ग गामी हैं। राग द्वेष रहित और आप्त पुरुषों का बताया हुआ मार्ग ही सन्मार्ग है। वही मार्ग सब से उत्तम है, प्रधान है, ऐसी जिसकी निश्चयपूर्वक मान्यता है वही सम्यक् श्रद्धावान है। मूल : तहिआणं तु भावाणं; सब्भावे उवएसणं| भावेण सद्दहवस्स; सम्मत्वं तं विआहि||| छायाः तथ्यानाम् तु भावानाम् सद्भाव उपदेशनम। भावेन श्रद्दधतः, सम्यक्त्वं तद्व्याख्यातम्।।४।। अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (सब्भावे) सद्भावना वाले के द्वारा कहे हुए (तहिआणं) सत्य (भावाणं) पदार्थों का (उवएसणं) उपदेश (भावेण) भावना से (सद्दहंतस्स तं) श्रद्धापूर्वक वर्तने वाले को (सम्मत्तं) सम्यक्त्वी ऐसा (विआहिअं) वीतरागों ने कहा है। भावार्थ : हे गौतम! जिसकी भावना विशुद्ध है, उसके द्वारा कहे हुए यथार्थ पदार्थों को जो भावना पूर्वक श्रद्धा के साथ मानता हो, वही सम्यक्त्वी है ऐसा सभी तीर्थंकरों ने कहा है। मूल : निस्सग्गुवएसरुई, आणरुई सुत्चबीअरुइमेवा अभिगमवित्याररूई, किरियासंखेवधम्मरुई||५|| छाया: निसर्गोपदेशरुचिः, आज्ञारुचिः सूत्रबीजरुचिरेव। अभिगमविस्ताररुचिः, क्रियासंक्षेपधर्मरुचिः।।५।। Boooooo00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 5000000000000000000000000 doo0000000000000oobi Cain Foucation international निर्ग्रन्थ प्रवचन/73 20000000 0000000000000 For Personal & Private Use Only www.amellbrary.org