________________ 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 Vdoo0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 पर नहीं होता है। इसी तरह यत्नपूर्वक भोजन करते हुए और बोलते हुए भी पाप कर्मों का बंध नहीं होता है। अतएव, हे आर्य! तू अपनी दिनचर्या को खूब ही सावधानी पूर्वक बना, जिससे आत्मा अपने कर्मों के द्वारा भारी न हो। मूल: पच्छा वि ते पयाया खिप्पं गच्छंति अमरभवणाई। जेसिं पियो तवो संजमोय खंतीय बम्भचेरंच||२२|| छायाः पश्चादपि ते प्रयाताः क्षिप्रं गच्छन्त्यमर भवनाति। येषां प्रियं तपः संयमश्च शान्तिश्च ब्रह्मचर्यं च।।२२।। अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (पच्छा वि) पीछे भी अर्थात वृद्धावस्था में (ते) वे मनुष्य (पयाया) सन्मार्ग को प्राप्त हुए हों (य) और (जेसिं) जिसको (तवो) तप (संजमो) संयम (य) और (खंती) क्षमा (च) और (बम्भचेरं) ब्रह्मचर्य (पियो) प्रिय है, वे (खिप्पं) शीघ्र (अमरभवणाई) देव भवनो को (गच्छंति) जाते हैं। भावार्थ : हे गौतम! जो धर्म की उपेक्षा करते हुए वृद्धावस्था तक पहुंच गये हैं उन्हें भी हताश न होना चाहिए। अगर उस अवस्था में भी वे सदाचार को प्राप्त हो जाएं और तप, संयम, क्षमा, ब्रह्मचर्य को अपना लाडला.साथी बना लें, तो वे लोग देवलोक को प्राप्त हो सकते हैं। मूलः तवो जोई जीवो जोइठाणं, जोगा सुया सरीरं कारिसंगं| कम्मेहासंजमजोगसंती, होमंहुणामिइसिणंपसत्य||२३|| छायाः तपो ज्योतिर्जीवोज्योतिः स्थानं योगाः सुवः शरीरं करीषांगम्। ___कर्मेधाः संयमयोगाः शान्तिहोम जुह्यमि ऋषिणा प्रशस्तेन।।२३।। अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (तवो) तप रूप तो (जोई) अग्नि (जीवो) जीव रूप (जोइठाणं) अग्नि का स्थान (जोगा) योग रूप (सुया) कड़छी (सरीरं) शरीर रूप (कारिसंग) कण्डे (कम्मेहा) कर्म रूप ईंधन-काष्ट (संजम जोग) संयम व्यापार रूप (संती) शान्ति–पाठ है। इस प्रकार का (इसिणं) ऋषियों से (पसत्थ) श्लाघनीय चारित्र रूप (होम) होम को (हुणामि) करता हूँ। भावार्थ : हे गौतम! तप रूप जो अग्नि है, वह कर्म रूप ईंधन को भस्म करती है। जीव अग्नि का कुण्ड है। क्योंकि तप रूप अग्नि जीव संबंधिनी ही है एतदर्थ, जीव ही अग्नि रखने का कुण्ड हुआ। जिस प्रकार कड़छी से घी आदि पदार्थों को डालकर अग्नि को प्रदीप्त करते हैं, ठीक उसी प्रकार मन-वचन और काया के शुभ व्यापारों के द्वारा तप goo0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 doo0000000000000000 Jain pouca tormentadora न्थ प्रवचन/6: For Personal & Private Use OnlyO00000000000000000 sorg