________________ 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000oooot 0000000000 0000000000000000000000000000000 100000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000bf भावार्थ : हे गौतम! मिट्टी के लेप से मुक्त होने पर ही तूंबा जैसे पानी के ऊपर आ जाता है, वैसे ही आत्मा भी कर्म रूपी बन्धनों से सम्पूर्ण प्रकार से मुक्त हो जाने पर लोक के अग्रभाग पर जाकर स्थित हो जाता है। फिर इस दुःखमय संसार में उसको चक्कर नहीं लगाना पड़ता। ॥श्रीगौतमउवाच|| मूल : कहं चरे? कहं चिटठे? कहं आसे? कहं सए। कहं जंतो? भासंतो, पावं कम्मनबंधई||२011 . छायाः कथञ्चरेत!? कंथ तिष्ठेत्? कथमासीत् कथं शयीत्। कथं भुञ्जानो भाषमाणः पापं कर्म न बध्नाति।।२०।। अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (कह) कैसे (चरे) चलना? (कह) कैसे (चिठे) ठहरना? (कह) कैसे (आसे) बैठना?(कह) कैसे (सए) सोना? (कह) किस प्रकार (भुजंतो) खाते हुए एवं (भासंतो) बोलते हुए (पावं) पाप (कम्म) कर्म (न) नहीं (बंधई) बंधते हैं। भावार्थ : हे प्रभु! कृपा करके इस सेवक के लिए फरमावे कि किस तरह चलना, खड़े रहना, बैठना, सोना, खाना और बोलना चाहिए जिससे इस आत्मा पर पाप कर्मों का लेप न चढ़ने पावे। ॥श्रीभगवानुवाच| मूल: जयंचरे जयं चिढ़े, जयं आसे जयं सए। जयंभुंजंतो भासंतो पावं कम्मन बंधह||२१|| छायाः यतं चरेत् यतं तिष्ठेत् यतमासीत् यतं शयीत। यतं भुञ्जानो भाषमाणः पापं कर्म न बध्नाति।।२१।। अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (जयं) यत्नपूर्वक (चरे) चलना (जयं) यत्नपूर्वक ( चिठे) ठहरना (जयं) यत्नपूर्वक (आसे) बैठना (जयं) यत्नपूर्वक (सए) सोना, जिससे (पाव) पाप (कम्म) कर्म (न) नहीं बंधइ बंधता है। इसी तरह (जयं) यत्नपूर्वक (भुजंतो) खाते हुए (भासंतो) और बोलते हुए भी पाप कर्म नहीं बंधते / ___भावार्थ : हे गौतम! हिंसा, झूठ, चोरी आदि का जिस में तनिक भी व्यपार न हो ऐसी सावधानी को यत्न कहते हैं / यत्नपूर्वक चलने से, खड़े रहने से, बैठने से और सोने से पाप कर्मों का बंधन इस आत्मा OOOOOOOOOOOOOOOK निर्ग्रन्थ प्रवचन/62 00000000000old 500000000000000 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only