________________ 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000oogl 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 ago00000000000000000000000000000000000000000000000000000000 मूल : नाणंच दंसणंचेव, चरित्तं च तवो वहा| वीरियं उवओगोय; एयंजीवस्स लक्खणं||११|| छाया: ज्ञानञ्च दर्शनञ्चैव चारित्रञ्च तपस्तथा। वीर्यमुपयोगश्च एतज्जीवस्य लक्षणम् / / 11 / / अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (नाणं) ज्ञान (च) और (दसणं) दर्शन (चेव) और (चरित्तं) चारित्र (च) और (तवो) तप (तहा) तथा (वीरियं) सामर्थ्य (य) और (उवओगो) उपयोग (एय) यही (जीवस्स) आत्मा का (लक्खणं) लक्षण है। भावार्थ : हे गौतम! ज्ञान, दर्शन, तप, क्रिया और सावधानी पूर्वक, उपयोग ये सब जीव (आत्मा) के लक्षण है। मूलः जीवाऽजीवायबंधोयपुण्णंपावासवोतहा। संवरो निजरामोक्खो,संतेएतहियानव||२|| छायाः जीवा अजीवाश्च बन्धश्च पुण्यं पापाश्रवो तथा। संवरो निर्जरा मोक्षः सन्त्यते तथ्या नव।।१२।। अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (जीवाऽजीवा) चेतन और जड़ (य) और (बंधो) कर्म (पुण्णं) पुण्य (पावासवो) पाप और आश्रव (तहा) तथा (संवरो) संवर (निज्जरा) निर्जरा (मोक्खो) मोक्ष (एए) ये (नव) नौ पदार्थ (तहिया) तथ्य (संति) कहलाते हैं। भावार्थ : हे गौतम! जीव जिसमें चेतना हो / जड़ चेतना रहित / बंध जीव और कर्म का मिलना / पुण्य शुभ कार्यों द्वारा संचित शुभ कर्म / पाप दुष्कृत्यजन्य कर्मबंध आश्रव कर्म आने का द्वार / संवर आते हुए कर्मों का रूकना / निर्जरा एक देश कर्मों का क्षय होना / मोक्ष सम्पूर्ण पाप पुण्यों से छूट जाना / एकान्त सुख का भोगी होना मोक्ष है। मूल : धम्मो अहम्मो आगांसं कालो पोग्गलजंतवो। एस लोगुत्ति पण्णत्तो जिणेहिं वरदंसिहि।।१३।। छायाः धर्मोऽधर्म आकाशं कालः पुद्गलजन्तवः। एषः लोक इति प्रज्ञप्तो जिनैर्वरदर्शिभिः।।१३।। अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (धम्मो) धर्मास्तिकाय (अहम्मो) अधर्मास्तिकाय (आगासं) आकाशस्तिकाय (कालो) समय (पोग्गलजंतवो) पुद्गल और जीव (एस) ये छ: ही द्रव्य (लोगुत्ति) लोक 00000000 00000000000000000000000000000000000000000opl 0000000000000 निन्थ प्रवचन/26 etion Internatione 1000000000000 25000000