________________ 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 Vooo00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 सवत्यसिद्धगा चेव, पंचहाणुचरा सुरा। इइ वेमाणिया, एएऽणेगहा एवमायओ||६|| छाया: अधस्तनाधस्तनाश्चैव, अधस्तनामध्यमास्तथा। अधस्तनोपरितनाश्चैव, मध्यमाऽधस्तनास्तथा।।२३।। मध्यमामध्यामाश्चैव, मध्यमोपरितनास्तथा। उपरितनाऽधस्तनाश्चैव, उपरितनमध्यमास्तथा।।२४।। उपरितनोपरितनाश्चैव, इति ग्रैवेयकाः सुरा। विजया वैजयन्ताश्च, जयन्ता अपराजिताः / / 25 / / सवार्थसिद्धकाश्चैव, पंचधाऽनुत्तराः सुराः। इति वैमानिका एते, अनेकधा एवमाद्यः / / 26 / / अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (हेट्ठिमा हेठिमा) नीचे की त्रिक का नीचे वाला (चेव) और (हेट्ठिमा मज्झिमा) नीचे की त्रिक का बीच वाला। (तहा) तथा (हेट्टिमाउवरिमा) नीचे की त्रिक का ऊपर वाला (चेव) और (मज्झिमा हेट्ठिमा) बीच की त्रिक का नीचे वाला (तहा) तथा (मज्झिमा मज्झिमा) बीच की त्रिक का ऊपर वाला (तहा) तथा (उवरिमाहेट्ठिमा) ऊपर की त्रिक का नीचे वाला (चेव) और (उवरिमामज्झिमा) ऊपर की त्रिक का बीच वाला (तहा) तथा (उवरिमा उवरिमा) ऊपर की त्रिक का ऊपर वाला (इह) इस प्रकार नौ भेदों से (गेविज्जगा) ग्रैवेयक के (सुरा) देवता हैं। (विजया) विजय (वेजयंता) वैजयंत (य) और (जयंता) जयंत (अपराजिया) अपराजित (चेव) और (सव्वत्थसिद्धगा) सर्वाथसिद्ध ये (पंचहा) पाँच प्रकार के (अणुत्तरा) अनुत्तर विमान के (सुरा) देवता कहे गये हैं। (इइ) इस प्रकार (एए) ये मुख्य मुख्य (वेमाणिया) वैमानिक देवों के भेद कहे गये हैं और प्रभेद तो (उवमायओ) ये आदि में (अणेगहा) अनेक प्रकार के हैं। भावार्थ : हे गौतम! बारह देवलोक से ऊपर नौ ग्रैवेयक जो हैं उनके नाम यों हैं। (1) भद्दे (2) सुभद्दे (3) सुजाये (4) सुमाणसे (5) सुदर्शने (6) प्रियदर्शने (7) अमोहे (8) सुपडिभद्दे और (6) यशोधर और पांच अनुत्तर विमान यों हैं :- (1) विजय (2) वैजयंत (3) जयंत (4) अपराजित (5) सर्वाथसिद्ध, ये सब वैमानिक देवों के भेद बताए गये हैं। 000000000000000000000000opoo000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 500000000000000000oot निर्ग्रन्थ प्रवचन/188 Ka Jain Eduremedoooooooooooooooood 2 Fot Personal & Private Use Only ) 3000000000000000pcretprary.org