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________________ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000oogl 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000ood छायाः चन्द्राः सूर्याश्च नक्षत्राणि, ग्रहास्तारागणस्तथा। स्थिरा विचारिण श्चैव, पंचधा ज्योतिरालयाः / / 18 / / अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (जोइसालया) ज्योतिषी देव (पंचहा) पांच प्रकार के हैं। (चन्द्रा) चन्द्र (सूरा) सूर्य (य) और (नक्खत्ता) नक्षत्र (गहा) ग्रह (तहा) तथा (तारागणा) तारागण। जो (ठिया) ढाईद्वीप के बाहर स्थिर हैं। (चेव) और ढाईद्वीप के भीतर (विचारिणो) चलते फिरते हैं। भावार्थ : हे गौतम! ज्योतिषी देव पांच प्रकार के हैं। (1) चन्द्र (2) सूर्य (3) ग्रह (4) नक्षत्र और (5) तारागण / ये देव ढाइद्वीप के बाहर तो स्थिर रहने वाले हैं और उसके भीतर चलते फिरते हैं। वैमानिक देवों के भेद यों हैं:मूल : वैमाणिया उजे देवा, दुविहा ते वियाहिया| कप्पोवगा य बोवा, कप्पाईया तहेव य||६|| छायाः वैमानिकास्तु ये देवाः, द्विविधास्ते व्याख्याताः / ___कल्पोपगाश्च बोद्धव्याः, कल्पातीतास्तथैव च।।१६।। अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (जे) जो (देवा) देव (व्रमाणिया उ) वैमानिक हैं। (ते) वे (देविहा) दो प्रकार के (वियाहिया) कहे गये हैं। एक तो (कप्पोवगा) कल्पोत्पन्न (य) और (तहेव य) वैसे ही (कप्पाईया) कल्पातीत (बोधव्वा) जानना। ___ भावार्थ : हे गौतम! वैमानिक देव दो प्रकार के हैं। एक तो कल्पोत्पन्न और दूसरे कल्पातीत। कल्पोत्पन्न से ऊपर के देव कल्पातीत कहलाते हैं और जो कल्पोत्पन्न हैं वे बारह प्रकार के हैं। वे यों हैं :मूल : कप्पोवगा बारसहा, सोहम्मीसणगा वहा| सणंकुमारमाहिन्दा, बम्भलोगा यलंतगा||२०|| महासुक्का सहस्सारा, आणया पाणया तहा| आरणा अच्चुया चेव, इइ कप्पोवगा सुरा||१|| छायाः कल्पोपगा द्वादशधा, सौधर्मे शानगास्तथा। सनत्कुमारा माहेन्द्राः, ब्रह्मलोकाश्च लान्तका।।२०।। महाशुक्राः सहस्राराः, आनताः प्राणतास्तथा। आरणा अच्युताश्चैव, इति कल्पोपगाः सुरा।।२१।। . oooooooooooooooooooo000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 po0000 निर्गन्थ प्रवचन /186. Jain ! 0000ooo ooooooooooooodaihary.org,
SR No.004259
Book TitleNirgranth Pravachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherGuru Premsukh Dham
Publication Year
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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