________________ 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000008 भावार्थ : हे गौतम! भवनपति देव दस प्रकार के हैं। बाणव्यन्तर आठ प्रकार के हैं और ज्योतिषी पांच प्रकार के हैं। वैसे ही वैमानिक देव भी दो प्रकार के हैं। अब भवनपति के दस भेद कहते हैं। मूल : असुरा नागसुवण्णा, विज्जू अग्गी वियाहिया। दीवोदहि दिसा वाया, थणिया भवणवासिणो||१६|| छाया: असुरा नागाः सुपर्णाः, विद्युतोऽग्रयो व्याख्याताः। द्वीपा उदधयो दिशो वायवः, स्तनिता भवनवासिनः।।१६।। अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (असुरा) असुर कुमार (नागसुवण्णा) नाग कुमार, सुवर्ण कुमार (विज्जू) विद्युत कुमार (अग्गी) अग्नि कुमार (दीवोदहि) द्वीपकुमार उदधि कुमार (दिसा) दिक्कुमार (वाया) वायु कुमार तथा (थणिया) स्तनित कुमार। इस प्रकार (भवणवासिणो) भवनवासी देव (वियाहिया) कहे गये हैं। भावार्थ : हे गौतम! असुर कुमार, नाग कुमार, सुवर्ण सुकार, विद्युत कुमार, अग्नि कुमार, द्वीप कुमार, उदधि कुमार, दिक्कुमार, पवन कुमार और स्तनित कुमार यों ज्ञानियों द्वारा दस प्रकार के भवनपति देव कहे गये हैं। अब आगे आठ प्रकार के वाणव्यन्तर देव यों हैं। मूल : पिसाय भूय जक्खा य, रक्खसा किन्नरा किंपुरिसा। महोरगा य गंधब्बा, अविहा वाणमन्तरा||१७|| छाया: पिशाचा भूता यक्षाश्च, राक्षसाः किन्नराः किंपुरुषाः। _महोरगाश्च गन्धर्वाः, अष्टविधा व्यन्तराः / / 17 / / अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (वाणमंतरा) वाणव्यन्तर देव (अट्ठविहा) आठ प्रकार के होते हैं। जैसे (पिसाय) पिशाच (भूय) भूत (जक्खा) यक्ष (य) और (रक्खसा) राक्षस (य) और (किन्नरा) किंनर (किंपुरिसा) किंपुरुष (महोरगा) महोरग (य) और (गंधव्वा) गंधर्व / भावार्थ : हे गौतम! वाणव्यन्तर देव आठ प्रकार के हैं। जैसे (1) पिशाच (2) भूत (3) यक्ष (4) राक्षस (5) किन्नर (6) किंपुरुष (7) महोरग और (8) गंधर्व / ज्योतिषी देवों के पांच भेद यों हैं:मूल: चन्दा सूरा य नक्खचा, गहा तारागणा वहा। ठिया विचारिणो चेव, पंचहा जोइसालया||१४|| 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000ooot TOD Ndooo000000000000000 Jan Education International निर्ग्रन्थ प्रवचन/1851 Fon Personal & Private Use Only 50000000000000 www.jainelibrary.org