________________ 200000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000oooot 10000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 अध्याय सोलह - आवश्यक कृत्य ॥श्रीभगवानुवाच मूलः समरेसु अगारेसु, संधीसु य महापहे। एगो एगितिथए सद्धिं, णेव चिढ़े ण संलवे||१|| छायाः समरेषु अगारेषु, सन्धिषु च महापथे। _एक एकस्त्रिया सार्धं, नैव तिष्ठेन्न संलपेत्।।१।। अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (समरेसु) लुहार की शाला मे (अंगारेसु) घरों में (संधीसु) दो मकानों की बीच की संधि में (य) और (महापहे) मोटे पंथ में (एगो) अकेलरा (एगित्थिए) अकेली स्त्री के (सद्धि) साथ (णेव) न तो (चिट्टे) खड़ा ही रहे और (ण) न (संलवे) वार्तालाप करें। भावार्थ : हे गौतम! लुहार की शून्य शाला में, या पड़े हुए खण्डहरों में तथा दो मकानों के बीच में और जहाँ अनेकों मार्ग आकर मिलते हों वहां अकेला पुरुष अकेली औरत के साथ न कभी खड़ा ही रहे और न कभी कोई उससे वार्तालाप ही करे। ये सब स्थाल उपलक्षण मात्र हैं। तात्पर्य यह है कि कहीं भी पुरुष अकेली स्त्री से वार्तालाप न करें। मूल : साणं सूइअंगाविं, दित्तं गोणं हयं गयं| _संडिब्भं कलहं जुद्धं दूरओ परिवज्जए२|| छायाः श्वानं सूतिकां गां, दृप्तं गोणं हयं गजम्। सडिम्भं कलहं युद्धं, दूरतः परिवर्जयेत्।।२।। अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (साणं) श्वान (सूइअं) प्रसूता (गाविं) गो (दित्तं) मतवाला (गोणं) बैल (हय) घोड़ा (गय) हाथी इनको और (संडिब्भ) बालकों के क्रीड़ास्थल (कलह) वाक्युद्ध की जगह (जुद्ध) शस्त्र युद्ध की जगह आदि को (दूरओ) दूर ही से (परिवज्जए) छोड़ देना चाहिए। भावार्थ : हे आर्य! जहाँ श्वान, प्रसूता गाय, मतवाला बैल, हाथी, घोड़े आदि खड़े हों, या परस्पर लड़ रहे हों, वहां ज्ञानीजन को नहीं जाना चाहिए। इसी तरह जहाँ बालक खेल रहे हों या मनुष्यों में परस्पर वाक् युद्ध हो रहा हो, अथवा शस्त्र युद्ध हो रहा हो, ऐसी जगह पर जाना बुद्धिमानों के लिए दूर से ही त्यागने योग्य हैं। 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 1000000000000000000000 00000000000 Doooooooooooook Jain Edomemadona M8000000000000000000 निर्ग्रन्थ प्रवचन/1680000000000000000017 Enary.org