________________ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000oooot 00000 goo00000000000000000 00000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 (न) न तो (गिही) गृहस्थी है और न (पव्वइए) प्रव्रजित दीक्षित ही है, ऐसा तीर्थंकर (मन्ने) मानते हैं। भावार्थ : हे गौतम! लोभ, चारित्र के सम्पूर्ण गुणों को नाश करने वाला है, इसीलिए इस की इतनी महत्ता है। तीर्थंकरों ने ऐसा माना है, और कहा है कि गुड़, घी, शक्कर आदि वस्तुओं में से किसी भी वस्तु को साधु होकर कदाचित् अपने पास रात भर रखने की इच्छा मात्र करे या औरों के पास रखवा लेवें तो वह गृहस्थ भी नहीं है। क्योंकि उसके पहनने का वेष साधु का है और वह साधु भी नहीं है क्योंकि जो साधु हैं उनके लिए उपरोक्त कोई भी चीजें रात में रखने की इच्छा मात्र भी करना मना है। अतएव साधु को दूसरे दिन के लिए खाने तक की कोई वस्तु का भी संग्रह करके नहीं रखना चाहिए। मूल: जंपि वत्थं व पायं वा कम्बलं पायपुच्छणं| तं पि संजमलज्जा , धारेन्ति परिहिंति य||६|| छायाः यदपि वस्त्रं वा पात्रं वा, कम्बलं पादपुञ्छनम्। तदपि संयमलज्जार्थम्, धारयन्ति परिहरन्ति च।।६।। अन्वयार्थ : हे इन्द्रभूति! (ज) जो (पि) भी (वत्थं) वस्त्र (व) अथवा (पायं) पात्र (चा) अथवा (कम्बल) कम्बल (पायपुंच्छणं) पांव पोंछने का वस्त्र (तं) उसको (पि) भी (संजमलज्जट्ठा) संजम लज्जा 'रक्षा' के लिए (धारेंति) लेते हैं (य) और (परिहिंति) पहनते हैं। भावार्थ : हे गौतम! जब यह कह दिया कि कोई भी वस्तु नहीं रखना और वस्त्र पात्र वगैरह, साधु रखते हैं, तो भला लोभ संबंध में इस जगह सहज ही प्रश्न उठता है। किन्तु जो संयम रखने वाला साधु है, वह केवल संयम की रक्षा के हेतु वस्त्र पात्र वगैरह लेता है और पहनता है। इसलिए संयम पालने के लिए उसके साधन वस्त्र, पात्र, वगैरह रखने में लोभ नहीं है क्योंकि मुनियों को उनमें ममता नहीं होती। _|सुधर्मोवाच| मूल : न सो परिम्गहो वुत्तो नायपुत्चेण ताइणा। मुच्छा परिग्गहोवुत्तो, इइ वुत्वं महेसिणा||७|| छाया: न सः परिग्रह उक्तः, ज्ञातपुत्रेण त्रायिणा। मूर्छापरिग्रह उक्तः, इत्युक्तं महर्षिणा / / 7 / / 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 00000000000000000000000000000000000000p निर्ग्रन्थ प्रवचन/101 00000000000000 Jain Education International 00000000000 www.jainelibrary.org. For Personal & Private Use Only seonly