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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक अध्ययन ওও 5. मन्थल्लिका- महाराष्ट्री प्राकृत आदि भाषाओं में उस क्षुद्र कथा को ' मन्थाल्लिका कहते हैं जिसमें प्रारम्भ से अन्त तक पुरोहित, अमात्य, तापस आदि का उपहास किया जाय। 6. मणिकुल्या– जिसमें वस्तु पहले प्रकट न होकर बाद में प्रकाशित होती है। 7. परिकथा- जिसमें चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में से किसी एक को लक्ष्य करके विचित्र प्रकार के वृतान्तों को सुनाया जाता है। 8. खंडकथा- किसी प्रबन्ध के भीतर किसी प्रसिद्ध वृत्तान्त को उसके बीच से या किसी छोर से वर्णन करना खंडकथा है। 9. सकलकथा- जिसमें प्रारम्भ से लेकर फल प्राप्ति के अन्त तक पूरे चरित्र का यथातथ्य वर्णन होता है वह सकलकथा है। 10. उपकथा- जिसमें किसी चरित्र के अंग का आश्रय ग्रहण कर दूसरी कथा कही जाती है वह उपकथा है। 11. बृहत्कथा- किसी महत्त्वपूर्ण विषय को लेकर अद्भुत कार्य की सिद्धि का वर्णन करनेवाली पैशाची प्राकृत भाषा से युक्त कथा बृहत्कथा है। कथानक के भेद कथानक (कथावस्तु) के दो भेद हैं१. सामान्य 2. गुम्फित सामान्य कथानक में एक कथा होती है। सहायक कथाओं का इसमें अभाव होता है। गुम्फित कथानक में दो या दो से अधिक कथाएँ होती हैं। प्रधान कथा को अधिकारिक कथा कहते हैं और सहायक कथाओं को प्रासंगिक कथा कहते हैं। कथानक की रीतियाँ 1. वर्णनात्मक शैली, 2. आध्यात्मिक शैली, 3. डायरी शैली, 4. प्रतीकात्मक शैली,५. भावात्मक शैली, ६.बोधात्मक शैली। उक्त रीतियों का कथन आधनिक दृष्टि से किया गया है। डॉ० मक्खनलाल शर्मा * ने कथानक की रीतियों में वर्णनात्मक, आत्मकथात्मक, पत्रात्मक और डायरी शैली का विवेचन किया है। परन्तु ज्ञाताधर्मकथांग में कथानक की रीतियों को डायरी शैली एवं 1. शर्मा मक्खनलाल, हिन्दी उपन्यास, सिद्धान्त और समीक्षा. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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