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________________ 76 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन 7. प्रकृतिवादी 8. मनोविश्लेषणात्मक 9. आंचलिक 10. सर्वकल्याणकारी 11. रोमांचकारी 12. ग्रामीण समस्या प्रधान 13. मध्यवर्गीय चित्रण प्रधान 14. वर्ग संघर्ष युक्त 15. क्रांतिकारी 16. आध्यात्मिक 17. धार्मिक 18. पारिवारिक .. 19. संवेदनात्मक कथानक की योजना कथानक की सुन्दर आयोजना में कलाकार अपने अनुमान द्वारा यह निश्चय कर लेता है कि कौन-सी बात किस सीमा तक लिखनी है तथा किसका संकेत मात्र करके छोड़ना है। ऐसी मान्यता है कि कथानक में पाठकों की कल्पना के लिए जितनी अधिक सामग्री छोड़ दी जाए वह कथानक उतना ही रोचक एवं सफल होता है। कथानक के गुण कथानक का मुख्य गुण जिज्ञासा है। कथानक में जिज्ञासा की तृप्ति होने पर पाठक की मेधा और स्मरण शक्ति बढ़ जाती है। ज्ञाताधर्मकथा के कथानकों में प्रारम्भ से लेकर अन्त तक जिज्ञासा बनी रहती है, जब तक श्रोता या पाठक उसके पूर्ण विवरण को सुन या पढ़ नहीं लेता तब तक उसके अभिप्राय को नहीं समझ पाता। आचार्य हेमचन्द्र ने कथानकों के गुणों का विभाजन निम्न तरह से किया है 1. उपाख्यान- कथा-प्रबन्ध के बीच दूसरों को समझाने के लिए कही गई लघु कथाएँ उपाख्यान हैं। 2. आख्यानक- जो दूसरों को प्रबोतिध करने के लिए किसी ग्रंथिक के द्वारा किसी सभा में पढ़ा गया या अभिनय किया गया हो। 3. निदर्शन- जिसमें पशु-पक्षियों या अन्य जीवधारियों की चेष्टाओं और आचरणों से कार्य-अकार्य का निश्चय किया जाता हो। 4. प्रवलिका- कथा को लेकर जहाँ दो व्यक्तियों में विवादादि अर्द्धप्राकृत भाषा में प्रकट किया जाता है, वह प्रवाह्निका कहलाती है। . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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