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________________ ज्ञाताधर्मकथांग की विषयवस्तु 59 वह सभी तरह से योग्य समझा जाता है। इन चार प्रकार के विचार वाले व्यक्ति इस जगत में होते हैं। पाँच धान्य एक ओर जहाँ अक्षय निधि का उदबोध कराते हैं वहीं दूसरी ओर पाँच महाव्रतों का भी बोध कराते हैं जिस तरह से धान्य अक्षय होने पर ही अंकरित होते हैं वृद्धि को प्राप्त होते हैं और फल देते हैं उसी तरह साधक द्वारा ग्रहण किए गए पंचमहाव्रत अक्षय अर्थात् सम्पूर्ण सुरक्षा के भावों से युक्त होते हैं। महाव्रतों में किंचित भी दोष आने पर साधक परम पद को प्राप्त करने की अपेक्षा उसके दुष्प्रभाव से अधोगति को भी प्राप्त हो सकता है। इसलिए ग्रहण किए गए व्रतों की पूर्ण सुरक्षा आवश्यक है। 8. मल्ली ___ आठवाँ अध्ययन महाविदेह क्षेत्र से प्रारम्भ होता है। महाविदेह क्षेत्र के वीतशोका के राजा का नाम बल था। धर्मदेशना सुनकर उन्होंने मुनिधर्म स्वीकार कर लिया था। उनके पुत्र का नाम महाबल था। उसके छह राजा परम मित्र थे। उन्होंने निश्चय किया था कि सुख में, दुःख में विदेश यात्रा में तथा दीक्षा में सभी अवसरों पर हम एक-दूसरे के साथ ही रहेंगे। धर्मबल स्थविर की धर्मदेशना सुनकर महाबल में वैराग्य उत्पन्न हुआ और उसने दीक्षित होने की बात छहों मित्रों को बताई। छहों मित्रों ने भी महाबल के साथ दीक्षित होने का संकल्प किया। दीक्षित होने के पश्चात् सातों अनगारों ने एक ही प्रकार की तपस्या करने की सोची। परन्तु महाबल अपने मित्रों से छिपाकर, कपट करके अधिक तप करते थे। इसके परिणाम स्वरूप छह मुनियों को तो न्यून बत्तीस * सागरोपम की आयु प्राप्त हुई तथा महाबल मुनि को पूर्ण बत्तीस सागरोपम की स्थिति . प्राप्त हुई। साथ ही सभी को तीर्थंकर नामकर्म का बन्ध हुआ। छहों मुनि अलग-अलग राजकुलों में राजकुमारों के रूप में उत्पन्न हुए तथा महाबल का मिथिला के राजा कुंभ की रानी प्रभावती की कोख से कन्या रूप में जन्म हुआ। तीर्थंकर का जन्म पुरुष रूप में होता है परन्तु मल्ली कुमारी का जन्म स्त्री रूप में होना जैन इतिहास में आश्चर्यजनक एवं अद्भुत घटना है। ___ मल्ली कुमारी के जीव के प्रति पूर्व जन्म के साथी का जो अनुराग था वह अलग-अलग निमित्त पाकर जागृत हो गया और वे छहों राजकुमार मल्ली से विवाह करने के लिए मिथिला आ गए। . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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