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________________ 60. ज्ञाताधर्मकथांग का साहिात्यक एवं सांस्कृतिक अध्ययन मल्ली कुमारी ने अवधिज्ञान के साथ जन्म लिया था। इस कारण वह यह जान गई थी कि छहों राजकुमार उस पर आसक्त हो गए हैं। उसने प्रतिकार की भी तैयारी कर ली। मल्ली कुमारी ने अपने जैसी एक प्रतिमा बनवाई। वह प्रतिमा ऐसी लगती थी मानो स्वयं मल्ली कुमारी ही हो। वह प्रतिमा खोखली बनायी गयी और उसके मस्तक पर एक छेद किया गया। रोजाना उस छेद में कुछ भोजन डालकर फिर ढक्कन बन्द कर दिया जाता था जिससे वह भोजन प्रतिमा में जाकर सड़ता रहे। तत्पश्चात् मल्ली ने अपनी उस हमशक्ल प्रतिमा को एक खुले स्थान पर रखवा दिया और चारों ओर कमरों का निर्माण करवा दिया। इन गृहों में बैठने वाला प्रतिमा को स्पष्ट रूप से देख सकता था परन्तु अगल-बगल के कमरे में बैठनेवाले एकदूसरे को नहीं देख सकते थे। छहों राजा एक साथ मिथिला पहुंचकर अपने-अपने दूतों द्वारा मल्ली की मांग करने लगे। इस पर क्रोधित मिथिला नरेश ने सभी दूतों को अपमानित कर राजसभा से निकाल दिया। अपने दूतों के अपमान से अपमानित सभी राजाओं ने मिथिला पर आक्रमण कर दिया। कुम्भ राजा भी इस अन्याय के प्रतिकार हेतु सेना सहित तैयार हो गये। छ: राज्यों की सेना के समक्ष कुम्भ राजा कब तक टिकते। उन्होंने परास्त होकर नगरी में प्रवेश कर द्वार बंद करवा दिया। छहों राजा भी मिथिला को घेर कर बैठ गये। इधर मल्ली प्रात: पिता के दर्शनार्थ उपस्थित हुई और पिता द्वारा उचित आदर सत्कार नहीं प्राप्त कर पूछा- हे पिताजी! आज आप दुःखी एवं चिन्तित क्यों हैं? पिता ने उपरोक्त सभी वृत्तान्त कह सुनाये तब मल्ली ने कहा- इसमें चिन्ता की बात नहीं है। सभी राजाओं को सन्ध्याकाल में महल में अलग-अलग द्वार से बुलाकर कन्या देने की सूचना भिजवा दीजिए, पुत्री की बुद्धि पर विश्वस्त होकर राजा कुम्भ ने सभी राजाओं को दूतों द्वारा अलग-अलग द्वारों से बुलाकर उस मूर्ति रूपी मल्ली के चारों ओर निर्मित कमरों में बिठाया। मूर्ति को साक्षात् मल्ली समझकर सभी राजा लालायित हो रहे थे। उसी समय मल्ली ने वहाँ आकर ढक्कन हटा दिया। सभी राजाओं की उस मूर्ति से निकली दुर्गन्ध से स्थिति नाजुक होने लगी तब मल्ली ने सबको शरीर की नश्वरता का उपदेश देकर विरक्त किया एवं सभी को दीक्षा हेतु प्रेरित कर स्वयं भी दीक्षित होने की इच्छा प्रकट की। सभी ने इसका अनुमोदन किया। मल्ली ने वर्षीदान देकर सामायिक चारित्र ग्रहण किया। कुछ समय पश्चात् उन छहों राजाओं ने भी संयम अंगीकार कर लिया और मल्ली भगवान की सेवा में विचरण करने लगे। अन्त में सभी निर्वाण को प्राप्त हुए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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