________________ प्राकृत कथा साहित्य का उद्भव एवं विकास 43 तीन भेद किए गए हैं। 5. उद्योतनसूरि ने स्थापत्य के आधार पर पाँच भेद किए हैं। (1) सकल-कथा, (2) खण्डकथा, (3) उल्लाप-कथा, (4) परिहास-कथा और (5) संकीर्ण कथा।२ 6. हेमचन्द्र ने अपने काव्यानुशासन में कथाओं के 12 भेद किए हैं- (1) आख्यायिका, (2) कथा, (3) आख्यान, (4) निदर्शन, (5) प्रवह्निका, (6) मन्थल्लिका, (7) मणिकुल्या, (8) परिकथा, (9) खंडकथा, (10) सकलकथा, (11) उपकथा और (12) बृहत्कथा। 7. डॉ० ए०एन० उपाध्ये ने वर्ण व विषय की शैली के आधार पर कथाओं को पाँच भागों में विभक्त किया है।४ (1) प्रबन्ध शैली में विशिष्ट पुरुषों के चरित्र। (2) तीर्थंकर या विशिष्ट पुरुषों में किसी एक का विस्तृत चरित्र। (3) प्रेम प्रसंगों से युक्त कथाएँ। (4) अर्द्ध-ऐतिहासिक कथाएँ। (5) उपदेशप्रद कथायें। इस प्रकार उपरोक्त वर्गीकरण से यह स्पष्ट होता है कि प्राकृत-कथा-साहित्य विभिन्न वर्गों में विभक्त है। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि चरित्र काव्यों को भी कथा साहित्य में समाविष्ट किया गया है क्योंकि इन चरित्रों में कथा तत्त्व की मात्रा बहुत अधिक होती है। चरित्र व्यक्ति के समग्र कथानक को प्रस्तुत करता है। इसलिए चरित्र भी कथा है ऐसा कहा जा सकता है। . प्राकृत कथा साहित्य की सामान्य विशेषताएँ किसी भी साहित्य के निर्माता का मूल उद्देश्य उसके लक्ष्य तक पहंचना होता है। अगर वह साहित्य लक्ष्य पूर्ति में साधक बन जाता है तो साहित्य सफलता को प्राप्त करता है। प्राकृत कथाओं का भी मूल लक्ष्य सरल, सहज व स्वाभाविकता " से युक्त मनोरंजक कथा को कहते हुए धर्म एवं आध्यात्म की ओर अग्रसर करना है। 1. लीलावईकहा गाथा 36. 2. कुवलयमालाकथा, अध्ययन-७, पृ०-४, 3. हेमचन्द्र, काव्यानुशासन, अध्ययन-८, सूत्र-७-८. 4. बृहत्कथाकोष, भूमिका पृ०-३५. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org