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________________ 42. ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन अर्थ-कथा . व्यक्ति की आर्थिक समस्याओं और उसके समाधान को कथा के माध्यम से व्यक्त करना अर्थ-कथा है। काम-कथा रूप, सौन्दर्य, युवावस्था, वंश आदि विषयों की शिक्षा कथा के माध्यम से प्रदान करना काम-कथा है।२ धर्म-कथा क्षमा, मार्दव, आर्जव, तप, संयम, सत्य, शौच, अकिंचन, ब्रह्मचर्य, अणुव्रत, दिग्व्रत, देशव्रत, अनर्थदण्डव्रत, सामायिक, प्रोषधोपवास, भोग-परिभोग, अतिथिसंविभाग, अनुकम्पा तथा अकाम निर्जरा का जहाँ वर्णन हो वह धर्मकथा है।३ . दशवैकालिक में धर्मकथा के भी चार भेद किये गये हैं आक्षेपिणी, विक्षेपिणी, संवेगिणी और निवेदिणी। मिश्र-कथा जिन कथाओं में अर्थ, काम और धर्म इन तीनों का सम्मिश्रण पाया जाये वह मिश्रकथा कहलाती है। दशवैकालिक में भी कहा गया है कि जिस कथा में धर्म, अर्थ, काम इन तीन पुरुषार्थों का निरूपण हो वह मिश्र कथा है।५ समराइच्चकहा एवं लीलावईकहा में पात्रों के आधार पर कथा के तीन भेद किये गये हैं 1. दिव्य- जिनमें दिव्य लोक के व्यक्तियों के क्रियाकलाप से कथानक या कथावस्तु का निर्माण होता है वे दिव्य कथाएँ कहलाती हैं। 2. मानुषी- पूर्ण मानवता से युक्त व्यक्ति के उत्थान, पतन एवं विभिन्न समस्याओं का उल्लेख जिस कथा में होता है वह मानुषी कथा कहलाती है। 3. दिव्य-मानुषी– मनुष्य एवं देवों से सम्बन्धित प्राकृत भाषा में कही जानेवाली मनोहर एवं सरस कथा दिव्य-मानुषी कथा कहलाती है।६ 4. भाषा के आधार पर कथाओं के (1) संस्कृत, (2) प्राकृत, (3) मिश्र 1. दशवैकालिक, . गाथा-१८९. 2. वही, गाथा-१९२. 3. समराइच्च्कहा, पृ. 3. 4. दशवैकालिक गाथा 193-195. 5. वही गाथा 266. 6. लीलावईकहा गाथा 36. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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