________________ 44 . ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन आचार्य उद्योतनसूरि ने कुवलयमाला में प्राकृत कथा साहित्य की विशेषताओं का वर्णन करते हुए कहा है - “सालंकारा सुहया ललिय-पया मउय-मंजु संलावा। सहियाण देइ हरिसं उब्बूढा णव बहू चेव।। सुकई-कहा-हय-हिययाण तुम्ह जइ विहुण लग्गए एसा। पोढा-रयाओ तह विहु कुणई विसेसं णव-बहुव्व।।" अर्थात् सुन्दर अलंकारों से विभूषित, सुस्पष्ट, मधुरालाप और भावों से नितान्त मनोहर तथा अनुरागवश स्वमेव शय्या पर उपस्थित अभिनव वधू की तरह. सुगम, कलाविधा सम्बन्धी वाक्य-विन्यासों के कारण सुश्राव्य, मधुर-सुन्दर शब्दावली से गुम्फित; कौतूहल युक्त सरस और आनन्दानुभूति उत्पन्न करने वाली कथा होती है। इस प्रकार प्राकृत कथाएँ सभी को हर्ष उत्पन्न करती हैं। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं 1. प्राकृत कथाओं में अनेकानेक स्थलों पर कथाओं का प्रारम्भ प्रश्नोत्तर के रूप में हुआ है। लीलावईकहा में पत्नी, पति को सांयकालीन मधर वेला देखकर स्नेहील कथा कहने का आग्रह करती है।२ प्राकृत के प्राय: सभी चरित्र काव्यों में यही शैली प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए जम्बूचरियं३ नेमिचन्दसरि का महावीर-चरित्र एवं रयणचूडरायचरित५ लिया जा सकता जिसमें एक श्रोता महावीर के चरित्र को पूछता है और ज्ञानी या वक्ता उस चरित्र का उद्घाटन करता है। 2. पूर्व जन्मों का उल्लेख- प्राकृत कथाओं में कथाकार कथा कहता है, वहीं अचानक से पूर्व जन्म का घटनाक्रम जोड़ देता है, जिससे कथा में गति आ जाती है। आजकल धारावाहिकों एवं चलचित्रों में फ्लैश बैक दिखाया जाता है वही पद्धति कथाओं में प्राप्त होती है। प्राकृत कथाओं में केवली या अन्य ज्ञानी नायक को धर्मदेशना देते हैं। उस धर्मदेशना को सुनते ही नायक को पूर्वजन्म का ज्ञान हो जाता है। इसी तरह राजा 1. कुवलयमाला कहा, पृ. 4, अध्ययन 8. 2. लीलावईकहा गाथा 24, “जोण्हाउरियं कोस.......छप्पओ' 3. जम्बूचारित्र, गाथा, 25-29. 4. महावीरचरित्र गाथा, 99-100. 5. रयणचूडचरित्र, पृ०-२. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org