________________ 32. ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन का कथा साहित्य इस दृष्टि से समृद्ध है, क्योंकि यहाँ की कथाओं, वार्ताओं, आख्यानों, उपमाओं, दृष्टान्तों आदि में शिक्षा के साथ-साथ प्रेरणास्पद एवं मनोरंजक तथ्य भी सम्मिलित हैं। ऋग्वेद, ब्राह्मण, उपनिषद्, महाभारत, रामायण आदि बोधप्रद कथा संग्रह हैं। बौद्धों की जातक कथाएँ कथा साहित्य का अनुपम भण्डार हैं। पैशाची भाषा की गुणाढ्य की बृहत्कथा को कहानियों का अक्षय कोष कहा गया है। वस्तुत: अल्प ज्ञान से युक्त नर-नारियों के लिए शीघ्रबोध प्रदान कराने में . कथा सर्वोत्तम है। यही बोध यदि उन्हीं की भाषा में कराया जाय तो शीघ्र समझ में आ जाता है। महावीर ने उस समय की प्रचलित अर्द्धमागधी में उपदेश देकर उसे सहज गम्य बना दिया। कथा साहित्य का विकास-क्रम प्राकृत कथा साहित्य का प्रादुर्भाव आगमों के समय से ही हो चुका था। आगमों में कथाओं, उपमाओं, उदाहरणों एवं हेतुओं द्वारा दार्शनिक, आध्यात्मिक एवं नैतिक तथ्यों की सुन्दर व्यंजना उपलब्ध है। इस विशाल साहित्य में प्रेमाख्यान, उपन्यास, दृष्टान्त, उपदेश आदि से सम्बन्धित अनेक कथाएँ उपलब्ध हैं। प्राकृत कथाओं को निम्न भागों में विभक्त कर उसके विकास-क्रम का आंकलन करना न्यायोचित रहेगा(अ) आगम युगीन कथाएँ ___ आगमों में प्राप्त कथाएँ वस्तत: धार्मिक एवं नैतिक हैं। बृहत्कथाकोष की भूमिका में कहा गया है कि आगमयुगीन कथाओं की प्रमुख विशेषता उपदेशात्मक एवं आध्यात्मिकता है। इसमें तीर्थंकरों एवं उनके अनुयायियों, शलाकापुरुषों व अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों की जीवन रेखाएँ, व्याख्यात्मक रूपक, उद्देश्य प्रधान कथाएँ एवं ऐसे सभी पुरुषों के जीवनवृत्त सम्मिलित हैं जिन्होंने अपने उत्तरकालीन जीवन में उच्च पद प्राप्त किया था। डॉ० ए०एन० उपाध्ये ने आगमयुगीन कथाओं की प्रवृत्ति के बारे में बताते हुए कहा कि प्रारम्भ में जो मात्र उपमाएँ थीं, बाद में व्यापक रूप प्रदान करने एवं धर्मार्थ उपदेश देने के निमित्त उन्हें कथात्मक रूप प्रदान किया गया।२ आगम से उद्धत कुछ कथात्मक प्रसंग इस प्रकार हैं१. बृहत्कथाकोष, भूमिका, पृ०-१८, (द्वारा हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्य का आलोचनात्मक अध्ययन, पृ०-४). 2. वही, पृ०-१८. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org