________________ 22 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन का. अलग-अलग स्वतन्त्र रूप से एवं शोधात्मक पद्धति से काल निर्धारण की आवश्यकता आज भी है। जैन विद्या में आगमों का काल निर्धारण करने वाले विषयों पर शोध करने वाले शोधार्थी इस विषय में विशेष प्रकाश डालेंगे ऐसी आशा है। ज्ञाताधर्मकथा का रचनाकाल ज्ञाताधर्मकथा में भगवान महावीर द्वारा उपदेशित धर्मकथाओं का संकलन है। ज्ञाताधर्मकथा में कुछ कथाएँ अत्यन्त प्राचीन हैं और जिनकी विषय-वस्तु महावीर के युग तक की मानी गयी हैं, परन्तु ज्ञाताधर्मकथा में प्राप्त मल्ली और द्रौपदी के विषय निश्चय ही जैन संघ के विभाजन के बाद के हैं। जिसे प्रथम और द्वितीय शताब्दी तक का माना जा सकता है। इसका दूसरा श्रुतस्कन्ध जरूर कुछ परवर्ती काल का माना गया है। जैन आगमों का रचनाकाल अर्धमागधी आगमों में प्रज्ञापनासूत्र, दशवैकालिकसूत्र और छन्द-सूत्रों के अतिरिक्त शेष ग्रन्थों के रचनाकार के सम्बन्ध में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। हमें तो इसका कारण यह नजर आता है कि आगमकर्ताओं ने अपना नाम इसलिए ग्रन्थ में नहीं लिखा होगा कि जनमानस’ आगमों को गणधरों की कृतियाँ ही मानता रहे। इसे विपरीत शौरसेनी आगम ग्रन्थों में सभी रचनाकारों का स्पष्ट उल्लेख है। पाण्डुलिपि ___ज्ञाताधर्मकथा की बहुत-सी पाण्डुलिपियाँ विभिन्न ग्रन्थ भण्डारों एवं जैन शिक्षण संस्थाओं में उपलब्ध हैं। यहाँ हमने कुछ प्रमुख हस्तलिखित प्रतियों के पृष्ठ, संख्या, आकार एवं काल का परिचय देते हुए ग्रन्थ भण्डारों का परिचय देने का प्रयास किया है१. ज्ञाताधर्मकथांग- मूल अर्थ सहित, पत्र संख्या 335, अपूर्ण, आगम अहिंसा समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर, संस्थान ग्रन्थ संख्या 404 है। . 2. ज्ञाताधर्मकथांग- मूल अर्थ सहित पत्र संख्या 363, संवत् 1808 चैत्र मास, 1. जैन विद्या के विविध आयाम, पृ०-१७-१८. 2. वही, खण्ड 5, पृ०-३६-३७, डॉ०सागरमल जैन का लेख. * Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org