SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 18 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन उत्तराध्ययन, 1 दशवैकालिक,२ कल्पसूत्र, 3 विनयपिटक, मज्झिमनिकाय, 5 दीघनिकाय, 6 सुत्तनिपात, तिलोयपण्णत्ति, जयधवला, 9 धनञ्जय नाममाला,१० उत्तरपुराण११ आदि प्राचीन ग्रन्थों के साथ-साथ प्राकृत के इतिहास के डॉ. . नेमिचन्द शास्त्री१२ डॉ. जगदीश चन्द्र जैन, पं. बेचरदास दोशी१३ के ग्रन्थों में भी प्राप्त होता है। विभिन्न ग्रन्थों के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि जहाँ श्वेताम्बर परम्परा में महावीर के वंश का नाम ज्ञातृ बताया गया है, वहीं दिगम्बर परम्परा में महावीर के वंश का नाम नाथ प्राप्त होता है। उसी के साथ महावीर का सम्बन्ध जोड़ने / का प्रयास हआ है। नाथ, नाय, णाय, ज्ञातृ आदि शब्द पूज्यता के द्योतक भी है। अत: ज्ञातृकथा का यह ग्रन्थ ज्ञातृ पुत्र महावीर द्वारा उपदिष्ट कथाओं का ग्रन्थ है। आगमों का रचनाकाल आचारांग का प्रथम श्रुत स्कन्ध और ऋषिभाषित अशोककालीन प्राकृत अभिलेखों से भी प्राचीन है। ये दोनों ग्रन्थ लगभग ई०पू० पाँचवी-चौथी शताब्दी की रचनाएँ हैं।१४ आचारांग की सूत्रात्मक शैली भाव, भाषा आदि की दृष्टि से प्राचीनतम है। सूत्रकृतांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के छठे अध्याय, आचारांगचूला और कल्पसूत्र में भी 1. उत्तराध्ययन, 6/17. 2. दशवैकालिक, अध्ययन-५, उददेशक 2, गाथा-४९. दशवैकालिक, 6/25. (स) दशवैकालिक, 6/21. . 3. कल्पसूत्र, 110. 4. विनयपिटक महावग्ग, पृ०-२४२. मज्झिमनिकाय, हिन्दी उपाति सूतन्य, पृ०-२२२. 6. दीर्घनिकाय, सामन्जफल, 18/21. 7. सुत्तनिपात सुभियसुत्त, पृ०-१०८. 8. तिलोयपण्णत्ति, 4/550. 9. जयधवला, पृ०-१३५. 10. धनञ्जयनाममाला, पृ०-११५. 11. उत्तरपुराण, पृ०-४५०. 12. शास्त्री, नेमिचन्द, प्राकृत भाषा एवं साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पृ. 172. 13. दोशी, बेचरदास, भगवान् महावीर की धर्मकथाओं का टिप्पण, पृ०. 180. 14. जैन विद्या के आयाम, खण्ड-५, डॉ०सागरमल जैन, पृ०-१२-१३. For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy