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________________ द्वितीय अध्याय ज्ञाताधर्मकथांग का रचनाकाल,परिचय एवं नामकरण जैन आगम साहित्य में ज्ञाताधर्मकथा का छठा स्थान है। नायाधम्मकहा, ज्ञातृधर्मकथा, ज्ञातृकथा आदि कई नाम ज्ञाताधर्मकथा के प्राप्त होते हैं। विभिन्न ग्रन्थों में प्राप्त ज्ञाताधर्मकथा के नाम की व्युत्पत्ति इस रूप में प्राप्त होती है१. तत्त्वार्थभाष्य में कहा गया है कि "ज्ञाता: दृष्टान्ताः तानपादाय धर्मों यत्र कथ्यते ज्ञाताधर्मकथा:" अर्थात् जिस ग्रन्थ में उदाहरणों के द्वारा धर्म का कथन किया गया हो वह ज्ञाताधर्मकथा है।' 2. जयधवला में ज्ञाताधर्मकथा का नाम नाथधर्मकथा प्राप्त होता है। नाथ का अर्थ यहाँ स्वामी से लिया गया है। नाथधर्मकथा अर्थात् तीर्थंकर द्वारा प्रतिपादित धर्मकथा।२ 3. आचार्य अभयदेव एवं आचार्य मलयगिरि ने ज्ञाताधर्मकथा में उदाहरण प्रधान धर्मकथाएँ होने के कारण इस ग्रन्थ को ज्ञाताधर्मकथा कहा है। इन आचार्यों का विचार है कि ज्ञाताधर्मकथा के प्रथम अध्ययन में ज्ञात है एवं द्वितीय अध्ययन में कथाएँ हैं।३ 4. जैन आगमों में भगवान महावीर के वंश का नाम ज्ञात था और उनके द्वारा प्रतिपादित कथाओं का वर्णन होने से इस ग्रन्थ का नाम ज्ञाताधर्मकथा पड़ा। ज्ञातृ वंश का उल्लेख आचारांग,४ सूत्रकृतांग, 5 भगवती, 6 1-2. तत्त्वार्थभाष्य- जैन आगम साहित्य मनन एवं मीमांसा पृष्ठ 130 से उद्धृत. 3. ज्ञातानि उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथाः। नन्दीसूत्रं, मुनि पुण्यविजयजी, 92 / पढम-बितिय-सुयखंधमणियाणं णायाधम्मकहाणं नगरादिया भन्नति।, वही 4. आचारांग, श्रुतस्कन्ध-१, अध्ययन-८, उद्देशक 8, सूत्र-४४८. आचारांग, श्रुतस्कन्ध-२, अध्ययन-१५ सूत्र-१००३. 5. सूत्रकृतांग, उद्देशक 1, गाथा-२२. (ब) सूत्रकृतांग, 1/6/2. .. सूत्रकृतांग, 1/6/24. (द) सूत्रकृतांग, 2/6/19. 6. व्याख्याप्रज्ञप्ति, 15/79. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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