________________ 12 . ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन जैन परम्परा में चौदह पूर्व या दृष्टिवाद के नाम से ही श्रुतज्ञान माना जाता था। ___आगमों का दूसरा वर्गीकरण देवर्धिगणि क्षमाश्रमण के समय अर्थात् वीर निर्वाण के 980 वर्ष के आस-पास हुआ जिसमें अंगप्रविष्ट व अंगबाह्य ये दो भेद किये गये। नन्दीसूत्र में आगमों का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है-२ अंग बाह्य अंग प्रविष्ट आचारांग आवश्यक व्यतिरिक्त सूत्रकृतांग आवश्यक सामायिकसूत्र स्थानांग समवाय भगवती ज्ञाताधर्मकथा उपासकदशा अन्तकृतदशा अनुत्तरौपपातिकदशा प्रश्नव्याकरण चतुर्विंशतिस्तव वन्दना प्रतिक्रमण कायोत्सर्ग प्रत्याख्यान उत्कालिक दशवैकालिक कल्पिकाकल्पिक चुल्लकल्पश्रुत : महाकल्पश्रुत औपपातिक राजप्रश्नीय जीवाभिगम प्रज्ञापना महाप्रज्ञापना प्रमादाप्रमाद विपाकसूत्र दृष्टिवाद कालिक उत्तराध्ययन दशाश्रुतस्कन्ध कल्पसूत्र व्यवहारसूत्र निशीथसूत्र महानिशीथसूत्र ऋषिभाषित जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति द्वीपसागरप्रज्ञप्ति चन्द्रप्रज्ञपित / क्षुल्लिकाविमान विभक्ति अंगचूलिका अंगचूलिका विवाहचूलिका अरूणोपपात वरूणोपपात गरूडोपपात धरणोपपात वैश्रवणोपपात वेलन्धरोपपात नन्दी अनुयोगद्वार देवेन्द्रस्तव तंदुलवैचारिक चन्द्रवेध्यक सूर्यप्रज्ञप्ति पौरुषीमण्डल मण्डल-प्रवेश विधाचरण विनिश्चय गणिविधा 1. “अहवा तं समसाओ दुविहं पण्णत्तं, तंजहा-अंगपविढं अंगबाहिरं च" नन्दीसूत्र-मुनि मधुकर, 79. 2. नन्दीसूत्र, मुनि मधुकर, पृ०-१६५. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org