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________________ प्राकृत आगम परम्परा एवं ज्ञाताधर्मकथांग भी प्रक्षिप्त किये गये हैं। उदाहरण के रूप में वर्तमान प्रश्नव्याकरण की विषय वस्तु का उल्लेख नन्दीचूर्णि के पूर्व कहीं भी नहीं मिलता है। लेखन परम्परा लिपि का प्रादुर्भाव तीर्थंकर महावीर से पूर्व ही हो चुका था। प्रज्ञापनासूत्र में अठारह लिपियों का उल्लेख आता है।१ भगवतीसूत्र में भी मंगलाचरण के अन्तर्गत ब्राह्मी लिपि को नमस्कार किया गया है।२ अत: यह स्पष्ट है कि लेखन कला व सामग्री का विकास या अस्तित्व आगम लेखन के पूर्व भी था, किन्तु आगमों के लिखने की परम्परा न होकर कण्ठाग्र करने की परम्परा थी, जिसके कारणों का निर्देश पूर्व में किया जा चुका है। यही परम्परा बौद्ध व वेदों के लिये भी थी इसी कारण इन तीनों में 'श्रुत' 'सुतं' व 'श्रुति' शब्द का प्राचीन ग्रन्थों के लिए प्रयोग हुआ है। - आगमों को लिपिबद्ध करने का स्पष्ट उल्लेख देवर्धिगणि क्षमाश्रमण के पर्व प्राप्त नहीं होता है। पूर्व में लेखन की परम्परा नहीं होने से भी आगमों का विच्छेद नहीं हो जाए, एतदर्थ लेखन व पुस्तक रखने का विधान किया गया और बाद में आगम लिखे गए। इस प्रकार आगम लेखन की दृष्टि से ईसा की पांचवीं शताब्दी महत्त्वपूर्ण है। वर्गीकरण ___जैन आगमों का सर्वप्रथम वर्गीकरण पूर्व एवं अंग के रूप में समवायांग में प्राप्त होता है। इस ग्रन्थ में पूर्वो की संख्या चौदह५ व अंगों की संख्या बारह बतलायी गयी है। 'अंग' शब्द जैन परम्परा में आगम ग्रन्थों के लिये प्रयुक्त हुआ है। आचार्य अभयदेव आदि के मतानुसार बारह अंगों के पहले (पूर्व) भी साहित्य निर्मित किये गये थे। कुछ चिन्तकों का मत है कि महावीर के पूर्ववर्ती साहित्य को 'पूर्व' कहा जाता है। किन्तु इतना तो निश्चित है कि “पूर्वो' की रचना द्वादशांगी से पूर्व हुई थी। जब तक आचारांग आदि अंग साहित्य का निर्माण नहीं हुआ था तब तक 1. प्रज्ञापनासूत्र, पद-१. .. 2. भगवतीसूत्र, मंगलाचरण, 1/1. 3. शास्त्री, देवेन्द्र मुनि-जैन आगम साहित्य: मनन और मीमांसा, पृ०- 43. 4. दशवैकालिक चूर्णि, पृ. 21. 5. “चउदश पुव्वा पण्णत्ता तंजहा” समवायांग, समवाय 14. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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