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________________ 10. ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन वाचना 'स्कन्दिली वाचना' के नाम से जानी जाती है। प्रथम वाचना के समय जैनों का प्रमुख केन्द्र बिहार और दूसरी वाचना के समय केन्द्र उड़ीसा था। परन्तु निरन्तर दुष्कालों के पड़ने से यह केन्द्र बिहार से स्थानान्तरित होकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश हो गया। चतुर्थ वाचना ___मथुरा सम्मेलन के समय अर्थात् वीर निर्वाण 827-840 के आस-पास वल्लभी में नागार्जुन की अध्यक्षता में भी एक आगम संकलन का प्रयास हुआ।२ जो 'नागार्जुनीय वाचना' के नाम से विख्यात है। इसका उल्लेख भद्रेश्वर रचित कहावली ग्रन्थ में मिलता है।३ चूर्णियों में भी नागार्जुन नाम से पाठान्तर मिलता है। ‘पण्णवणा' जैसे अंगबाह्य सूत्रों में भी इस प्रकार के पाठान्तरों का निर्देश है। आचार्य देववाचक ने भी भावपूर्ण शब्दों में नागार्जुन की स्तुति की है।५ . पंचम वाचना वीर निर्वाण के 980 वर्षों बाद लोगों की स्मृति पहले से दुर्बल हो गयी, अत: उस विशाल ज्ञान भण्डार को स्मृति में रखना कठिन हो गया। अत: वीर निर्वाण 981 या 993 (सन् 454 या 466) में देवर्धिगणि क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में संघ एकत्रित हआ और स्मृति में शेष सभी आगमों को संकलित कर उसे मूर्त रूप प्रदान किया।६ पुस्तक रूप में लिखने का यह प्रथम प्रयास था। कहीं-कहीं पर यह उल्लेख भी आता है कि आचार्य स्कन्दिल व नागार्जुन के समय ही आगम लिखित रूप में कर दिये गये थे। वर्तमान में जो आगम उपलब्ध हैं वे देवर्धिगणि क्षमाश्रमण की वाचना के हैं और उसके बाद उनमें परिवर्तन व परिवर्द्धन नहीं हआ, ऐसा माना जाता है,८ किन्तु शोध की दृष्टि से कुछ ऐसे स्थल भी मिले हैं जो आगमों में इसके बाद 1. नन्दीचूर्णि, पृ०-९. 2. जैन हीरालाल, भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ०-५५. 3. मालवणिया दलसुख, जैन दर्शन का आदिकाल, पृ०-७. 4. वही, पृ०-७. 5. योगशास्त्र, प्रकाश 3, पृ०-२०७. 6. स्थानांग सूत्र, मुनि मधुकर, प्रस्तावना, पृ०-२७. 7. योगशास्त्र, पृ०-२०७. 8. दशवैकालिक, भूमिका आचार्य तुलसी, पृ०-२७. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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