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________________ प्राकृत आगम परम्परा एवं ज्ञाताधर्मकथांग पाटलिपुत्र आए। वहाँ यक्षा आदि साध्वियाँ दर्शनार्थ आयी। वहीं पर स्थूलिभद्र ने सिंह का रूप धारण करके चमत्कार दिखाया। यह बात भद्रबाहु को ज्ञात हुई और उन्होंने आगे वाचना देने से अस्वीकार करते हुये कहा- ज्ञान का अहंकार विकास में बाधक है। आचार्य स्थूलिभद्र द्वारा क्षमा मांगने एवं अत्यधिक अनुनय-विनय के पश्चात् शेष चार पूर्वो की वाचना केवल शब्द रूप में प्रदान की। इस प्रकार पाटलिपुत्र वाचना में दृष्टिवाद सहित अंग साहित्य को व्यवस्थित करने का प्रयत्न हुआ था। द्वितीय वाचना __ आगम संकलन हेतु दूसरी वाचना ईस्वी पूर्व द्वितीय शताब्दी अर्थात् वीर निर्वाण 300 से 330 के मध्य में हुई। उड़ीसा के सम्राट खारवेल थे जो जैन धर्म के उपासक थे। उन्होंने उड़ीसा के कुमारी पर्वत पर जैन मनियों का सम्मेलन बुलाकर मौर्यकाल में जो अंग विस्मृत हो गये थे, उन्हें संकलित कराया। इस वाचना के प्रमुख आचार्य सुस्थित व सुप्रतिबुद्ध थे, ये दोनों सहोदर थे।१ __ हितवन्त थेरावली के अलावा अन्य किसी ग्रन्थ में इसका उल्लेख नहीं है, किन्तु खण्डगिरि व उदयगिरि में जो शिलालेख उत्कीर्ण हैं उनसे स्पष्ट होता है कि आगम संकलन हेतु यह सम्मेलन किया गया था।२ तृतीय वाचना . वीर निर्वाण 827-840 के पूर्व भी एक बार और भयंकर दुष्काल पड़ा, जिसमें अनेक जैन श्रमण परलोकवासी हो गये और आगमों का कण्ठस्थीकरण यथावत नहीं रह पाया। इसलिए इस दुर्भिक्ष की समाप्ति पर वीर निर्वाण 827-840 के मध्य मथुरा में आर्य स्कन्दिल के नेतृत्व में श्रमण संघ एकत्रित हुआ।३ . इस सम्मेलन में मधुमित्र, संघहस्ति, प्रभृति आदि 150 श्रमण उपस्थित थे, परन्तु आचार्य स्कन्दिल ही समस्त श्रुतानुयोग को अंकुरित करने में महामेघ के समान इष्ट वस्तु के प्रदाता थे। जिनदासगणि महत्तर५ ने लिखा है कि दुष्काल के आघात से केवल स्कन्दिल ही अनुयोगधर बच पाये, उन्होंने ही मथुरा में अनुयोग का प्रर्वतन किया। अत: यह 1. हितवंत, थेरावली, गाथा-१०. 2. जैन साहित्य का वृहद इतिहास, भाग-१, पृ०-८३. 3. विविधतीर्थकल्प, पृ०-९. 4. प्रभावक चरित्र, पृ०-५४. 5. नन्दीचूर्णि, पृ०-९, गाथा-३२. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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