SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपसंहार 171 को लिए हुए विषय की ओर बढ़ती हैं। कथा वर्गीकरण के कारण इसके भाव को यद्यपि धर्मकथा के रूप में व्यक्त किया गया है, परन्तु इसमें दिव्य-कथा, मानवीय-कथा और दिव्य-मानवीय-कथा के स्वरूप भी विद्यमान हैं। यह एक ऐसा कथाग्रन्थ है जिसमें घटनाक्रम को सविस्तार उद्देश्यपूर्वक प्रदर्शित किया गया है। यथा- धर्म, अर्थ और काम ये तीन पुरुषार्थ मानव जीवन को क्रियाशील बनाते हैं जिसकी परिणति उद्देश्यमूलक मोक्ष के रूप में होती है। जहाँ तक इसकी विषयवस्तु का प्रश्न है तो सर्वत्र ही उपदेश, नीति, आचरण, संयम, त्याग, तप आदि में तादात्म सम्बन्ध है। इसकी एक कथा में कई अवान्तर कथाएँ हैं जिनकी सामान्य विशेषताएँ व्यक्ति के विशेष गुणों को उद्घाटित करती हैं। ज्ञाताधर्मकथांग का जो साहित्यिक स्वरूप है वह निश्चित ही आधुनिक कथा साहित्य के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। इसी दृष्टि से वर्तमान परिप्रेक्ष्य से इसके साहित्यिक स्वरूप का विश्लेषण किया गया है। कथाकार ने इसमें अन्तरंग और बहिरंग दोनों ही प्रकार की दृष्टियों को सामने रखकर कथानकों को बखूबी प्रस्तुत किया है। इसमें मानवजीवन का प्रतिनिधित्व, पशु-पक्षियों का प्रतिनिधित्व एवं लोक प्रचलित पात्रों का प्रतिनिधित्व कथानक की वास्तविकता को चित्रित किया है। जिससे कथानक में न केवल तथ्य की सत्यता उद्घाटित हुई है, अपितु मानव-मूल्यों के नैतिक आदर्शों का आभास भी हुआ। आज के उलझनशील, अनाचार, दुराचार एवं प्रदूषित वातावरण में ज्ञाताधर्म के पात्रों की चेतना-शक्ति न केवल प्रेरक बनती है अपितु मनुष्य को मनुष्यत्व का आभास भी कराती है। - ज्ञाताधर्म कथा के पात्र बोलते, चलते, फिरते एवं आपस में बात-चीत करते हुए प्रतीत होते हैं, क्योंकि कथा की वर्णन योजना उदात्तीकरण के साथ-साथ जनमानस के लोकतत्त्व की रुचि के अनुसार है, इसलिए इसकी मौलिकता मनोरञ्जन और शिक्षा दोनों ही प्रदान करती हैं। ___ आगमों की भाषा अर्धमागधी मानी गयी है। आर्ष प्राकृत के रूप में इसका प्रमुख स्थान है। ज्ञाताधर्मकथांग आर्षपुरुष द्वारा प्ररुपित और आर्ष ज्ञाता द्वारा सूत्रबद्ध किया गया है, अत: आर्ष के गुणों से युक्त अर्धमागधी भाषा के इस आगम ग्रन्थ में कई प्रकार की भाषात्मक विशेषताएँ है। आगम भाषा का कोई स्वतन्त्र व्याकरण नहीं है। यदि इनके नियमों को आधार बनाकर व्याकरण प्रस्तुत किया जाए तो अर्धमागधी के प्राचीन स्वरूप को अधिक बल मिल सकेगा। ज्ञाताधर्मकथांग के क्रियात्मक प्रयोगों - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy