________________ अष्टम अध्याय उपसंहार सर्वज्ञ की देशना का प्रतिफल आगमों में है। आगम को ज्ञान-विज्ञान का अक्षय भण्डार कहा गया है। आगमों में हमारी सांस्कृतिक विरासत के मूल तथ्य विद्यमान हैं जो इस बात की प्रेरणा देते हैं कि आगम परस्पर में विरोधरहित वचनों के सार से युक्त हैं। व्यक्ति को भोगवादी जीवन से हटाकर ज्ञानमार्ग की ओर ले जाने में सहायक हैं। इसके अन्तरंग में अर्थ, शब्द, भाव एवं विचार की गम्भीरता और सूत्रों में सम्पूर्ण जीव-जगत के रहस्य का छायांकन है इसके भाष्यों में जिनशासन का अपूर्व दर्शन, विज्ञान, गणित, ज्योतिष, भूगोल, खगोल आदि विधाओं का अंग आगमों की संख्या बारह है जिसमें तीर्थंकरों की वाणी सिद्धान्त रूप में प्रतिपादित हैं। आचार-विचार, व्यवहार, समय, समवाय आदि सभी कुछ इसके मूल में हैं, परन्तु इसके मूल को समझाने के लिए जो कथात्मक प्रयोग किये गये हैं वे सभी अंग आगम ग्रन्थों में नहीं हैं। अनुसंधानकर्ताओं एवं विचारकों ने कथा के स्वरूप को ध्यान में रखकर ज्ञाताधर्म को कथा ग्रन्थ का प्रारम्भिक चरण स्वीकार किया है। मैंने जैसे ही आगमों के अध्ययन को प्रारम्भ किया वैसे ही धर्म तत्त्व के गम्भीर रहस्य हमारे सामने आये परन्तु रहस्य को रहस्य बनाए रखने का प्रयोजन न होने के कारण यह संकल्प किया कि महावीर के जितने भी उपदेश हैं क्या वे सहज एवं सरल रूप में किसी आगम के माध्यम से समझे जा सकते हैं। इस दृष्टि से ज्ञाताधर्मकथांग, विपाकसूत्र आदि कई अंग आगम रहस्य को समझानेवाले ग्रन्थ मेरे चिन्तन के विषय बन गए। किन्तु शोध-प्रबन्ध के रूप में मैंने ज्ञाताधर्मकथांग को सांस्कृतिक जीवन मूल्यों की स्थापना करनेवाला विशिष्ट कथात्मक ग्रन्थ मानकर .. - इसका समालोचनात्मक एवं साहित्यिक विश्लेषण किया है। ..आगम आप्तवचन है इसकी परम्परा अनादि है, परन्तु इसके अन्तिम उपदेशक महावीर माने जाते हैं जिनके उपदेश अर्थ रूप में विद्यमान हैं। गणधरों ने उसे सूत्रबद्ध किया और आचार्यों ने उनकी देशना को विधिवत विषयानुसार विभाजित करके आगम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org