________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन पाँच महाव्रतों की. सार्थकता और षट्जीवनिकाय के जीवों के संरक्षण पर प्रकाश डाला गया है। इसी तरह श्रमण और श्रमणी के बोध के लिए कूर्म का उदाहरण दिया गया है जिसमें यह प्रतिपादित किया गया है कि जो व्यक्ति श्रमण धर्म स्वीकार कर उसकी रक्षा करता है वह मोक्ष को प्राप्त करता है। व्रत, समिति, गप्ति, परीषह जय, भावना, तत्त्वचिन्तन, कर्मक्षय, द्रव्यपर्याय,२ एकत्व-अनेकत्व, सिद्ध-रिद्ध, महाव्रत, सिद्ध-वृद्धि,५ निःश्रेयस धर्म, धर्म तीर्थ, धर्महित, जीवहित, 6 आराधक विराधक, पंच इन्द्रिय निग्रह,८ मासखमण, आदि कई श्रमण धर्म के गुणों का विवेचन कथानकों के प्रसंग में किसी न किसी रूप में आवश्य किया गया है। श्रावक के धर्मों का भी विवेचन इसके मूल कथानकों में है। श्रेणिक राजा की तत्त्व के प्रति जिज्ञासा, अभय का धर्म के प्रति आस्था, धारिणी की धर्म जिज्ञासा, शुभाशुभफल की इच्छा, 10 जितशत्रु की श्रावकत्व दृष्टि एवं तत्त्व जिज्ञासा, विवेकशीलता, अध्यवसाय, सत् तत्त्व, तथ्य११ आदि श्रावक के भाव, पंच अणव्रत, बारह प्रकार के श्रावक धर्म के प्रति रुचि, 12 श्रावकवृत्ति 13 आदि व्रतों पर भी प्रकाश डाला गया है। ज्ञाताधर्म में निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी या श्रमण-श्रमणी की तरह श्रावक-श्राविकाओं को भी पूजनीय माना गया है और कहा गया है कि जो व्यक्ति इनके प्रति श्रद्धा रखता है वह परलोक में भी दुःखी नहीं होता।१४ ___ श्रमण धर्म एवं श्रावक धर्म के विवेचन के साथ-साथ अन्य धर्मों की धार्मिक क्रियाओं एवं धार्मिक स्थिति का वर्णन भी है। सन्तान प्राप्ति के लिए देवपूजा, शक परिव्राजक का परिव्रजाक सम्बन्धी धर्म, शौचधर्म, तीर्थस्नान, त्रिदण्ड धारण करने का कथन एवं परिव्राजकों के मठ आदि का विवेचन उस समय प्रचलित विविध धार्मिक मतों की पुष्टि करता है। 1. ज्ञाताधर्मकथांग, 3/26. 2. वही, 5/50. 3. वही, 5/50. 4. वही, 5/52. 5. वही, 7/31. 6. वही, 8/165. 7. वही, 11/4. 8. वही, 15/12. 9. वही, 16/24. 10. वही, 1/90. 11. वही, 12/15. 12. वही, 12/23, 24. .13. वही, 12/24. 14. “सावयण-सावियाणं अच्चणिज्जे भवइ, परलोए विय नो आगच्छइ जाव" ज्ञाताधर्मकथांग 15/12. For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org