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________________ 166 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन विष वाणिज्य, (10) केश वाणिज्य, (11) यन्त्रपीडन कर्म, (12) निल्छन कर्म, (13) दावग्निदापन कर्म, (14) सरहदतडागशोषण, (15) असतीजन पोषण। ग्यारह उपासक प्रतिमाएँ ज्ञाताधर्मकथांग में श्रावकों के व्रत में ग्यारह उपासक प्रतिमाओं का भी उल्लेख आया है।' ग्यारह प्रतिमाएँ निम्न हैं __ (1) दर्शन प्रतिमा, (2) व्रत प्रतिमा, (3) सामायिक प्रतिमा, (4) पोषध प्रतिमा, (5) कायोत्सर्ग प्रतिमा, (6) ब्रह्मचर्य प्रतिमा, (7) सचित्ताहार:वर्जन प्रतिमा, (8) स्वयं आरम्भ: वर्जन प्रतिमा, (9) भृतक प्रेष्यारम्भ: वर्जन प्रतिमा, (10) उद्दिष्ट भक्तः वर्जन प्रतिमा, (11) श्रमण भूत प्रतिमा। श्रमण धर्म श्रमण धर्म में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह ये पाँच महाव्रत माने गये हैं। इन पाँच महाव्रतों की 5-5 भावनाएँ मानी गयी हैं। महाव्रतों के साथ-साथ श्रमणों के लिए पाँच समितिरे और तीन गुप्तियों का विधान किया गया है जो मनगुप्ति, वचनगुप्ति व कायगुप्ति के नाम से जानी जाती हैं। बारह भिक्षु प्रतिमाओं का भी उल्लेख मिलता है जिसमें भिक्षु क्रमशः आहार की मात्रा कम करता जाता है। अर्थात् जितनी प्रतिमायें होती हैं उतनी ही दन्ति आहार पानी लेने का विधान है। ज्ञाताधर्म की कथाओं में धर्म, दर्शन, आचार-विचार आदि का वर्णन कथानक के मध्य में दृष्टान्त/उदाहरण या वस्तु स्थिति को समझाने के लिए किया गया है। प्रथम अध्ययन में अणगार, संयत, श्रुतधर्म, ज्ञान, पूजा, दान, चर्या, पुण्य, पाप, व्रत, महाव्रत आदि का विशेष वर्णन किया गया है। इसके अन्त में समाधिमरण के प्रसंग को भी दर्शाया गया है जो साधक की भावना को व्यक्त करता है। इससे साधक मृत्यु के भय से सर्वथा मुक्त हो जाता है तथा अन्तर्रात्मा में सम्यक्-ज्ञान और वैराग्य को उत्पन्न कर परम आनन्द की ओर अग्रसर होता है। पञ्चमहाव्रत निर्ग्रन्थ और निम्रन्थी दोनों की साधना के लिए महत्त्वपूर्ण है। संघाट अध्ययन में निर्ग्रन्थ प्रवचन को विशेष महत्त्व दिया गया है। इसी में प्रत्याख्यान संलेखना अनशन आदि का प्रतिलेखन भी किया गया है। अंडक अध्ययन में भी 1. ज्ञाताधर्मकथांग 5/35. 2. वही, 16/68. . 3. वही, 2/52. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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