________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन 165 आदि।१ ज्ञात्ताधर्मकथांग में धर्म के दो भेद बताए गये हैं- (1) सागार विनय, (2) अनगार विनय।२ आचार की दृष्टि से अनगार धर्म और सागारधर्म ये भेद किये गये हैं। ज्ञाताधर्मकथांग में गृहस्थ के लिए आगार शब्द का प्रयोग हुआ है। गृहस्थ धर्म में पाँच अणुव्रत तथा सात शिक्षा व्रत समाविष्ट हैं। ज्ञाताधर्म में वर्णित है कि श्रमणों को पाँच महाव्रत, पाँच गुप्तियों तथा बारह भिक्षु प्रतिमाओं का पालन करना चाहिए। ज्ञाताधर्मकथांग में श्रावक व श्रमण के व्रतों एवं नियमों की संक्षिप्त चर्चा है। फिर भी प्रसंगानुसार श्रावक एवं श्रमणों के व्रतों का नामोल्लेख है जिनमें महाव्रत समिति, गुप्ति, परीषह और धर्म प्रमुख हैं। अणुव्रत श्रावक की साधना उसके व्रतों पर ही आश्रित होती है। श्रावक का वह व्रत जिसे पूरा करने में उसे किसी भी प्रकार का कष्ट न उठाना पड़े उसे अणुव्रत कहते हैं। ये अणुव्रत पाँच प्रकार के कहे गए हैं- (1) अहिंसाणुव्रत, (2) सत्याणुव्रत, . (3) अस्तेयाणुव्रत, (4) ब्रह्मचर्याणुव्रत, (5) अपरिग्रहाणुव्रत। शिक्षाव्रत उपासकदशांग में श्रावक के 7 शिक्षाव्रतों का उल्लेख मिलता है।५ (1) दिशापरिमाणव्रत, (2) उपभोग-परिभोग परिमाणव्रत, (3) अनर्थदण्ड परिमाणव्रत, (4) सामायिकव्रत, (5) देशावकाशिकव्रत, (6) पौषधोपवासव्रत, (7) अतिथिसंविभागवत। प्रत्येक व्रत के पाँच-पाँच अतिचार बतलाए गए हैं। उपासकदशांग में श्रावक के बारह व्रतों के अतिरिक्त पन्द्रह कर्मादान का भी वर्णन है। श्रावक को कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे कर्मों का बन्ध होता है, ऐसे कार्य को करने से नरक की प्राप्ति होती है। पन्द्रह कर्मादान निम्न हैं - (1) अंगार कर्म, (2) वन कर्म, (3) शकट कर्म, (4) भाटी कर्म, (5) स्फोटन कर्म, (6) दन्त वाणिज्य, (7) लाक्षा वाणिज्य, (8) रस वाणिज्य, (9) 1. पं० बेचरदास दोशी, जैन साहित्य का वृहद इतिहास, भाग 1, पृ० 193. 2. ज्ञाताधर्मकथांग 5/35. 3. ज्ञाताधर्मकथांग 16/68. . 4. वही, 5/30. 5. वही, 12/23. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org