________________ 162 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन चैत्य स्तूंप एवं उद्यान शहर के बाहरी भागों में बड़े-बड़े सुदृढ़ खम्भों पर पताकाओं एवं सैकड़ों घण्टों से युक्त विशाल चैत्यों का निर्माण किया जाता था।१ चैत्य को देवरूप मानकर व्यक्ति पूजा-अर्चना करता था। चैत्य में विभिन्न कलाओं को प्रदर्शित करनेवाले नृत्य, कलाबाज, मल्ल आदि निवास करते थे। मृतक के अंतिम संस्कार के स्थल के पास स्तूप निर्मित किये जाते थे। शास्त्रों में ऋषभदेव की स्मृति में भरत द्वारा स्तूप बनाये जाने का विवरण प्राप्त होता है। ___इसी प्रकार नगरवासियों के आराम एवं क्रीड़ा हेतु उद्यानों का निर्माण कराया जाता था। ये उद्यान अशोक, आम, जामुन आदि के वृक्षों से भरपूर होते थे।२ मूर्तिकला मनुष्य को प्राचीन काल से ही सोने, चाँदी, तांबा, पीतल, मिट्टी आदि की मर्तियाँ बनाने का ज्ञान था। मल्लीकमारी की स्वर्ण प्रतिमा का निर्माण इसका प्रमाण है। इसके अतिरिक्त नाग प्रतिमा एवं वैश्रमण प्रतिमा का उल्लेख भी प्रस्तुत ग्रन्थ में प्राप्त होता है। संगीतकला - बहत्तर कलाओं में वाद्य बजाना, स्वरों के आरोह, अवरोह, नाचना व सात स्वरों के सात उदय स्थानों का वर्णन भी प्राप्त होता है। वाद्यकला प्राचीन समय में 59 वाद्यों का उल्लेख आता है। संगीत, नृत्य एवं नाटक वाद्य के बिना अपूर्ण माने गये हैं। समस्त वाद्यों को स्वर एवं वादन विधि के अनुसार चार भागों में बांटा गया है। (1) तार रहित वाद्य, (2) तार वाले वाद्य, (3) तारसी से निकलने वाला स्वर, (4) पोल या छिद्र से निकलने वाला स्वर।५ नाट्यकला शास्त्रों में 32 प्रकार के नाटकों का उल्लेख मिलता है जिसे सूर्याभदेव ने महावीर के समक्ष प्रस्तुत किया था। 1. ज्ञाताधर्मकथांग, 10/2. 2. वही, 1/44, 2/3, 3/2, 5/3, 16/233. 3. वही, 8/35. 4. वही, 2/15. 5. वही, 8/163. 6. वही, 2/1/10. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org