________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन 157 की सिद्धि अर्थ से ही मानी गयी है। कहा गया है कि जिस के पास सम्पत्ति है उसी के सब मित्र-बन्धु हैं, वही पराक्रमी है, वही गणी है, वही पण्डित है। ज्ञाताधर्मकथा में श्रेणिक पुत्र अभयकुमार को अर्थशास्त्र का ज्ञाता बताया गया है।२ चार पुरुषार्थों में अर्थ का महत्त्वपूर्ण स्थान है। ज्ञाताधर्म में अर्थ/धन के कमाने के साधन आदि पर भी विचार किया गया है। अर्थोपार्जन के साधन अर्थोपार्जन से तात्पर्य वहाँ के व्यापार, व्यवसाय, उत्पादन एवं धन अर्जित करने के साधनों से लिया जाता है। जैन आगमों में अर्थ एकत्र करने में कृषि का विशेष योगदान माना गया है। कृषि, वाणिज्य एवं शिल्प कार्य करने वालों को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। कृषि हेतु जिन उपकरणों को कार्य में लिया जाता था उनका भी उल्लेख आगमों में प्राप्त है। ज्ञाताधर्म में मेढ़ी शब्द का प्रयोग खलिहान में एक ही केन्द्रबिन्दु के चारों ओर घूमकर अनाज साफ करने के यन्त्र के लिये हआ है।५ कृषि के लिए कौन-सी ऋत् का कब और किस फसल हेतु उपयोग होता है इसका वर्णन भी आगमों में उपलब्ध है।६ फसलों को एकत्र करने के लिये कोठार का अन्न भण्डार के रूप में उपयोग किया जाता था। अनाज मिट्टी के बड़े-बड़े कोठारों में रखकर पत्थर, मटका, लोहा, मिट्टी या गोबर से लेपकर बन्द कर दिया जाता था और भविष्य में कोई अनाज चुरा न ले इस हेतु मोहर लगाकर सील भी कर दिया जाता था।८ .. ज्ञाताधर्मकथांग में शाली (चावल) जो तत्कालीन धान्यों में प्रमुख था, का उल्लेख प्राप्त होता है।९ गेहूँ का भी उल्लेख अनेक स्थानों पर प्राप्त होता है।१० साथ ही दाल, ईख, जौ, तिल, सरसों, कपास, मसाले, फलों, सुगन्धित पदार्थों, ... कपूर, लौंग, चन्दन, 'अगर, लोभाण आदि का विवरण मिलता है।११ - 1. कौटिल्य अर्थशास्त्र 1/7, रामायण 6/83/21. 2. ज्ञाताधर्मकथांग 1/5. 3. स्थानांग 5/71. 4. प्रश्नव्याकरण सूत्र 17, ज्ञाताधर्मकथा 7/12. . 5. ज्ञाताधर्मकथा 1/15. 6. वही, 1/167. 7. वही, 1/15. 8. वही, 7/13. 9. वही, 7/12. 10. वही, 1/8/54. 11. वही, 5/59, 1/202, 1/44, 4/2, 8/27. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org