________________ 154 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन राज्य परिषद् - राज्य के अन्य सहायकों में अनेक गणनायक, क्षेत्राधिपति, दण्डनायक, ईश्वर (युवराज), तलवर (राजा द्वारा प्रदत्त स्वर्ण के पट्टे वाले), मांडलिक (कतिपय ग्रामों के अधिपति) कौटुम्बिक (ग्राम का स्वामी) ज्योतिषी, द्वारपाल, सेनापति, सार्थवाह, दूत और सन्धिपाल आदि होते थे।१ कोषागार राज्य का महत्त्वपूर्ण आधार होने के कारण राजकोष पर भी प्राचीन जैन ग्रन्थों में चर्चा की गई है। ज्ञाताधर्मकथांग में राजकोष को श्रीग्रह कहा गया है।२ / कर ज्ञाताधर्मकथांग में विभिन्न प्रकार के करों का उल्लेख मिलता है। विशेष अवसरों पर इन. करों में छूट भी प्रदान की जाती थी। जैन अंग आगम साहित्य में विभिन्न प्रकार के करों का वर्णन है। गायों पर प्रतिवर्ष लगनेवाला कर, चुंगी, किसानों से लिए जानेवाला कर, अपराध के अनुसार अपराधियों से लिया जानेवाला कर५ आदि अट्ठारह प्रकार के करों का वर्णन है।६ भेंट या घूस . जैन साहित्य से यह मालूम होता है कि उस वक्त रिश्वत का प्रचलन था। व्यक्ति अपना कार्य निकलवाने के लिए कर्मचारियों को भेंट (रिश्वत) देते थे। ज्ञाताधर्मकथांग में धन्य सार्थवाह ने अपने बालक को ढूँढ़ने के लिए नगर रक्षक कोतवाल को बहुमूल्य भेंट दिया था। न्याय व्यवस्था न्याय-व्यवस्था, शासन प्रणाली का अभिन्न अंग था। अपराधियों को अपराध के अनुसार दण्डित किया जाता था। भयंकर अपराध करनेवाले व्यक्ति को अंगभंग से लेकर मृत्युदण्ड भी दिया जाता था। कभी-कभी बेड़ियों में बांधकर भोजन पानी बन्द कर दिया जाता था, तो कभी अर्थदण्ड दिया जाता था। कभी देश निर्वासन 1. ज्ञाताधर्मकथांग, 1/30. 2. वही, 1/138. 3. वही, 1/91. 4. वही, 8/74, 17/25. 5. वही, 1/91. 6. जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ० 111-112. . 7. ज्ञाताधर्मकथांग 2/26. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org