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________________ ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन 153 राजा प्रजा का पालन करने के लिए राजा का होना अत्यन्त आवश्यक बताया गया है। राजा तत्कालीन शासन-व्यवस्था का केन्द्रबिन्दु था। श्रेणिक, पाण्डु, महाबल, वसु, पूरण, अभिचन्द्र आदि की राज्य-व्यवस्था का उल्लेख है। ये सभी राजा कुशल नीतिज्ञ और प्रशासक थे। युवराज राजा का शासन में हाथ बटाने तथा राज्य की सदृढ़ व्यवस्था बनाए रखने के लिए युवराज का होना अत्यन्त आवश्यक था। ज्ञाताधर्म के अनुसार मगध के राजा बिम्बिसार के समय में भी अभयकुमार ही राज्य (शासन), राष्ट्र (देश) कोश, कोठार (अन्न भण्डार), बल (सेना) और वाहन (सवारी के योग्य हाथी, अश्व आदि) पुर और अन्त:पुर की देखभाल करता था। उत्तराधिकारी साधारणत: राजा की मृत्यु के पश्चात् या राजा जब दीक्षा ग्रहण करने जाता था तो अपना पदभार अपने ज्येष्ठ पुत्र को सौंप देता था। राज्याभिषेक . राजा का राज्याभिषेक बहुत धूमधाम से किया जाता था। ज्ञाताधर्मकथांग में मेघकुमार के राज्याभिषेक का विस्तृत विवेचन मिलता है।१ :. राजमहल राजा राजप्रासादों में रहते थे। ये प्रासाद अत्यन्त ऊँचे होते थे। ऊँचे होने के कारण इनके शिखर आकाशतल का उल्लंघन करते थे। राजप्रासाद में अन्त:पुर होता . था। यहाँ पर रानियाँ निवास करती थीं। अन्त:पुर में अनेकों रानियाँ रहती थीं। अमरकंका के राजा पद्मनाभ के अन्त:पुर में सात सौ रानियाँ थीं।२ / मंत्री ... मंत्री या राजा राज्य की धूरी होता था। मंत्री साम, दाम, दण्ड और भेद इन चारों नीतियों का निष्णात होने के साथ-साथ जीव-अजीव का ज्ञाता होता था। मन्त्रिपरिषद् राज्य-व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण अंग था। ये राज्य के शुभचिन्तक होते थे तथा शासन का संचालन भी करते थे।४ / 1. ज्ञाताधर्मकथांग 1/134. 2. वही सूत्र 16/144. 3. वही, 9/11, 14/3. 4. वही, 5/28. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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