________________ 151 ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन दही, घी, तेल, माँस, मदिरा आदि का प्रचलन था। किन्तु ज्ञाताधर्मकथा में विभिन्न विधियों द्वारा अशुद्ध पानी को शुद्ध करने तथा मांसाहार रहित भोज्य पदार्थ का सेवन करने का विधान निर्देशित है।२ रोग एवं चिकित्सा ज्ञाताधर्मकथा में 16 प्रकार के रोगों का उल्लेख मिलता है। इन रोगों की स्नेहपान, वमन, विरेचन, अवदहन, उद्वलन, उद्वर्तन, अपस्नान, अनुवासना, वस्तिकर्म, तक्षण, प्रक्षण, तर्पण, पुटपाक, कन्दमूल, पुष्प, फल आदि अनेक औषधियों द्वारा चिकित्सा करते थे। विभिन्न औषधालयों का भी संचालन होता था जहाँ बीमारो की चिकित्सा की जाती थी। विशिष्ट आराधना ___ जैन आगमों में कार्य को सिद्ध करने के लिए देवताओं की आराधना का उल्लेख मिलता है। जैसे अभयकुमार ने तेला का उपवास कर देवाराधना की थी। पद्मनाभ ने द्रौपदी को पाने के लिए देवआराधना की थी।६ त्यौहार एवं उत्सव जैन आगमों में अनेक पर्वो एवं उत्सवों का उल्लेख प्राप्त होता है। उदाहरणार्थ पुत्रोत्सव दस दिन तक धूमधाम से मनाया जाता था। इस अवसर पर कैदियों को मुक्त करने का भी उल्लेख मिलता है। नामोत्सव के अवसर पर स्वजनों एवं सम्बन्धियों को अनेक वस्त्र एवं अलंकारों से सम्मानित किया जाता था। इसी प्रकार विवाह उत्सव एवं दीक्षा महोत्सव का उल्लेख प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए मेघकुमार दीक्षा समारोह, थावच्चा कुमार दीक्षा समारोह आदि का वर्णन महत्त्वपूर्ण है।९ अनेक देवी-देवताओं की पूजा भी उत्सव के रूप में की जाती थी। जैसे नागोत्सव, इन्द्रोत्सव, यक्षोत्सव।१० ... इस प्रकार ज्ञाताधर्मकथा में चारों वर्गों के पात्रों को लेकर उनके आचार-विचार, धर्म-कर्म, नीति-व्यवहार आदि पर स्वतन्त्र रूप से प्रकाश डाला गया है। इस आधार - 1. ज्ञाताधर्मकथांग, 2/33. . 3. वही, 13/21. 5. वही, 1/67. - 7. वही, 1/90, 91. 9. वही, 1/142, 143, 154. 2. वही, 12/16. 4. वही, 13/22. 6. वही, 1/82. 8. वही, 1/95. 10. वही, 1/141. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org