SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक अध्ययन है।१ मल्ली. नामक अध्ययन में भी असामयिक दृश्यों को प्रस्तुत किया गया है। अकाल में मेघ गर्जना, बिजली चमकना और ताड़ वृक्ष का पिशाचरूप धारण करना आदि भी अमानवीय तत्त्व हैं। ताड़ वृक्ष को पिशाच, उसके पत्तों को डरावना आदि बतलाना इसी बात का संकेत है।२ चित्रकार द्वारा सामने उपस्थित नहीं होनेवाली मल्लीकुमारी का तथा मनुष्य, पशु-पक्षी और अपद वृक्ष आदि के नहीं होने पर भी उसका उसी रूप में चित्रांकन इस अधययन की विशेषता है। माकन्दी अध्ययन में दक्षिण वन का वर्णन अमानवीय तत्त्वों से परिपूर्ण है। दक्षिण दिशा का वनखण्ड दुर्गन्ध से युक्त है व मृत कलेवर के समान है। इसी अध्ययन में जिनपालित और जिनरक्षित को निर्दयी और पापिनी देवी के द्वारा समुद्र में उछालना, दोनों हाथों से जकड़ना आदि अमानवीयता के ही सूचक हैं। 7. अंधविश्वास कथाकार की कथा में शकुन, अपशकुन, जादू-टोना, सम्मोहन, वशीकरण आदि लोक तत्त्वों का समावेश होता है। ज्ञाताधर्मकथा में भी लोकतत्त्वों का समावेश है। धारिणी देवी का मांगलिक महास्वप्नों को देखना स्वप्नवेत्ताओं द्वारा भविष्य का कथन करना आदि स्वप्न से सम्बन्धित विश्वासों की पुष्टि करता है। बलिकर्म और कुलदेवता की पूजा भी लोककथा को पुष्ट करते हैं।८ अभय कुमार की देवाराधना मनोगत संकल्प से युक्त होती है।९ लोकाचार, सूतक, नाग प्रतिमाओं तथा वैश्रमण प्रतिमाओं१° से फल-प्राप्ति की इच्छा का विवेचन और अधन्य, पुण्यहीन, कुलक्षणा एवं पापिनी भद्रा के द्वारा पुत्र या पुत्री की प्राप्ति के पश्चात् पूजा करने, पर्व के . दिन दान देने, द्रव्य के लाभ का हिस्सा देने और आराध्यदेव की अक्षयनिधि में वृद्धि करने का संकल्प लेना 11 आदि अंध धारणा के ही परिचायक हैं। लोकविश्वास के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं. . (क) जातिकर्म, जागरिका, चन्द्र-सूर्य दर्शन१२ आदि क्रियाएँ। (ख) दैनिक कार्य, असण, खान, पान आदि द्वारा सम्मान, बन्धुजनों को निमंत्रण, 1. ज्ञाताधर्मकथांग, 1/79. 2. वही, 8/61-62. 3. वही, 8/97-98.. 4. वही, 9/32. 5. वही, 9/50. 6. वही, 1/18. 7. वही, 1/40. 8. वही, 1/42. 9. वही, 1/67. 10. वही, 2/20. 11. वही, 2/11-12. 12. वही, 1/93,95,96,97. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy