SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 98 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन में उत्सुकता जागृत करता है। रोहिणी ज्ञात अध्ययन के प्रत्येक अंश कौतूहल की प्रवृत्ति से युक्त है। जिलपालित और जिनरक्षित के साहसजन्य कार्य जनप्रेरणा को . देनेवाले हैं। चन्द्र की स्थिति स्पष्ट है। जितशत्रु का आनन्द एवं कथन बुद्धि परीक्षा का दर्शन कराता है। श्रमणोपासक की स्थिति दर्दरज्ञात? अध्ययन से ज्ञात होती है। तेतलीपुत्र की शिक्षाएँ गुणों की ओर ले जाती हैं। इस प्रकार अनेक तत्त्वों से परिपूर्ण कथांश बुद्धि, चमत्कार और कौतूहल के वातावरण से युक्त है। इनमें केवल कल्पना ही नहीं है, अपितु कथन की सजीवता, मनोरंजन की प्रधानता एवं परम्पराओं का सुन्दर विश्लेषण भी है। 5. मनोरंजन कौतूहल और मनोरंजन के बिना कथा का विकास हो ही नहीं सकता। इस प्राचीन कथा ग्रन्थ में जिज्ञासा के साथ कथा का प्रारम्भ होता है और वही मनोरंजन के गुणों को लिए हुए लोकरुचि का कारण बन जाती है। अभयकुमार, मेघकुमार, राजा श्रेणिक, रानी धारिणी आदि के विवेचन में कथाकार केवल उनके गुणों का ही चिन्तन नहीं करता, अपितु कथा को जनमानस तक पहुंचाने के लिए नये-नये मनोरंजन पूर्ण वातावरण को भी उपस्थित करता है। मेघकुमार के समीप एक तरूणी को उपस्थिति किया जाता है जो श्वेत, रजतमय निर्मल जल से परिपूर्ण, उन्मत हाथी के महामुख के समान आकृति वाले शृंगार को ग्रहण करके खड़ी हुई है। कथाकार किसी भी चित्रण में मनोरंजन से नहीं चूकता है। जिनदत्त के चुटकी बजाने पर मयूरी नृत्य करती है। अत: स्पष्टत: यह कहा जा सकता है कि इस प्राचीन कथा ग्रन्थ में चाहे पशु-पक्षी की कथा हो या मानक की सर्वत्र मनोरंजन गुण रसात्मकता लिए हुए विकास को प्राप्त करती है। 6. अमानवीय तत्त्व साधारणतः इस तत्त्व में ऐसे कार्यों को लिया जाता है जो असम्भव हो। ज्ञाताधर्मकथा में अभयकुमार का कला चातुर्य असम्भव को सम्भव बनाता है। यथाअभयकुमार पिता की आज्ञापूर्वक असमय में दोहद की पूर्ति करता है अर्थात् जिस समय वर्षा नहीं थी उस समय वर्षा ऋतु का दृश्य उत्पन्न कर देता है। बादलों की गर्जना, बिजली की चमक, दिव्यवर्षा आदि से वर्षा ऋतु का आभास करा देता 2. वही, 1/150. 1. ज्ञाताधर्मकथांग, 13/32. 3. वही, 3/25. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy