________________ ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक अध्ययन 97 गया। तेतलिपुत्र नामक अध्ययन में संतान की अदला-बदली, मरी हुई लड़की का निहरण, चारक शोधन, कनकरथ का संरक्षण, संगोपन और संवर्धन ? गोपनीय ही रहता है। द्रौपदी की गवेषणा, द्रौपदी का उद्धार इसी से सम्बन्धित है। घोड़ों का अपहरण आदि कई अज्ञात रहस्यमय विवेचन ज्ञाताधर्म में आए हैं। इसी प्रकार जिनसे पाँच धान्य कणों२ को फेंक दिया उसे उज्झिका नाम दिया गया। जिसने उन पाँच धान्य कणों को खा लिया था उसे भोगवती कहा गया। जिसने उसकी सुरक्षा की थी उसे रक्षिका कहा गया और जिसने उसे बढ़ाया था उसे रोहिणी कहा गया। इन चारों उद्धरणों में एक ही रहस्य है कि जो व्यक्ति पंच व्रत स्वीकार करके छोड़ देता है वह बाह्य जगत में ही रमण करता है, जो उन्हें ग्रहण मात्र करता है उसे आभ्यन्तर वातावरण का ज्ञान होता है, जो उन ग्रहण किये हुए व्रतों को सुरक्षित भाव से रखता है वह रक्षित और जो इनके रहस्य को समझकर नियम से वृद्धि करता है, दूसरों को भी प्रेरणा देता है वह सर्वत्र प्रशंसनीय होता है। इस प्रकार अज्ञान, अलौकिक शक्ति, उत्सुकता, आश्चर्य, जिज्ञासा, लालसा आदि के रहस्यमय उद्घाटन से परिपूर्ण सभी कथायें कथानक कही जा सकती हैं। क्योंकि प्रत्येक कथा के कथानक में कुछ न कुछ शक्ति अवश्य विद्यमान होती है। 4. कौतूहल . . ज्ञाताधर्म के कथांशों में सर्वत्र कौतूहल विद्यमान है। कथाकार जो भी कथा प्रतिपादित करता है उसमें आर्य सुधर्मा का कथन और जम्बूस्वामी की जिज्ञासा ही प्रधान होती है। उनके द्वारा जो भी कथायें प्रस्तुत की गयी हैं उनमें सर्वप्रथम क्षेत्र, काल, स्थान आदि का वर्णन है, तत्पश्चात् कथा को प्रतिपादित किया गया है। यद्यपि ये लोक प्रचलित कथाएँ नहीं हैं फिर भी इन कथाओं में जिज्ञासा अन्तत: बनी रहती है। कथायें एक-दूसरे से जुड़ी हुई आगे चलती हैं और एक के बाद एक कौतूहल को उत्पन्न करती हैं। राजा श्रेणिक का पुत्र मेघकुमार कला प्रवीण होने के बाद क्या होगा? इसका ज्ञान कथा पढ़ने के बाद ही होता है। विजय चोर के कथानक में यह उत्सुकता बनी रहती है कि वह कैसा व्यक्ति है? मयूरी के अंडे संवेदनशीलता को बनाए हुए एक नये रूप को प्राप्त करती हैं। कर्म की स्थिति एवं सियारों की चालाकी कूर्म अध्ययन में जिज्ञासा को ही उत्पन्न करती है। थावच्चा नामक महिला कौन है यह सत्य कथा के अन्त में ही ज्ञात होता है। तुम्बक का दृष्टान्त मन 1. ज्ञाताधर्मकथांग, 14/22, 23, 24, 25. 2. ज्ञाताधर्म का अध्ययन सात द्रष्टव्य है. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org