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________________ 100 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन धायकर्म, नामकरण, पालने में सुलाना, पैरों से चलाना, चोटी रखना? आदि संस्कार लोक विश्वासों से पूर्ण हैं। (ग) अलंकारों को ग्रहण करना।२ (घ) देवों के आगमन पर आसन चलायमान होना।३ (ङ) पोतवहन में भग्न होना। इस प्रकार मानव समाज में प्रचलित अनेक विश्वासों का ज्ञाताधर्म की कथाओं में उल्लेख है। 8. हास्य-विनोद ज्ञाताधर्म की कथाओं में हास्य-विनोद के तत्त्वों का. भी मिश्रण है। इसकी प्रत्येक कथा में किसी न किसी तरह का विनोद भाव देखा जा सकता है। कथाकार ने कथा का प्रारम्भ ही विनोदात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। कथा के प्रारम्भिक चरण के बाद जहाँ कथा विकास को प्राप्त हुई है वहाँ पर हास्य और विनोद दोनों ही उभर कर आ गये हैं। रानी धारिणी के द्वारा देखे गए स्वप्न के फल का विवेचन भी इसी प्रकार का है। यथा- हे देवानुप्रिय! तुमने उदार प्रधान स्वप्न देखा है..........तुम्हें, स्वप्न देखने से अर्थ लाभ भी प्राप्त होगा और पुत्र लाभ भी। इसमें कल्याण की भावना के साथ हास्य विनोद भी है। विजय चोर के प्रसंग में गिद्ध के समान मांसभक्षी बालघातक और बालहत्यारा सम्बोधित करना हास्य का कथन करनेवाला है। अण्डक अध्ययन में वनमयूरी के अण्डे को हिलाने-चलाने के प्रसंग से कहा गया कि यह मयूरी का बच्चा मेरी क्रीड़ा करने योग्य न हआ।७ 9. उपदेशात्मकता ज्ञाताधर्मकथा में प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों ही प्रकार के उपदेशात्मक दृष्टिकोण देखने को मिलते हैं। कथाकार ने किसी उपदेश विशेष के उद्देश्य से जनजीवन को सुखी एवं समृद्धशाली बनाने का प्रयास किया है। उन्होंने पात्र चरित्र-चित्रण, घटनाक्रम एवं कथानक तत्त्वों के अन्तर्गत ही जीवन की अनुभूतियों को अभिव्यक्त कर दिया है जिसमें लोकरुचि, लोकजीवन एवं लोकसंस्कृति के साथ-साथ सिद्धान्त, 1. ज्ञाताधर्मकथांग, 1/98. 2. वही, 5/23. 3. वही, 8/164 4. वही, 9/14. 5. वही, 1/21. 6. वही, 2/30. 7. 'अहो णं ममं एस कीलावणए ण जाए।' - वही, 3/19. ' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004258
Book TitleGnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumari Kothari, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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