________________ 87 ज्ञाताधर्मकथांग का साहित्यिक अध्ययन जो पाँचों इन्द्रियों का गोपन करता है वह उपासना योग्य बन जाता है। 1 शैलिक अध्ययन का प्रत्येक अनुच्छेद कथानक से कथा को बढ़ाने एवं चारित्र का चित्रण करने में निपुण है। सुदर्शन से थावच्चापुत्र ने कहा कि हे सुदर्शन! 'किं मूलए धम्मे पण्णत्ते'? धर्म का मूल क्या है? सुदर्शन ने उत्तर दिया ‘सोयमूले धम्मे पण्णत्ते' शौचमूलक धर्म कहा गया है। इसी अध्ययन का शुक-थावच्चापुत्र संवाद अत्यन्त ही रोचक है “किं भंते! जत्ता? सुया! जं णं मम णाण- दंसण चरित्र तव संजममाइएहिं जोएहिं जोयणा से तं जत्ता"। से किं तं भंते! जवणिज्जे? सुया! इंदियजवणिज्जे य नोइंदियजवणिज्जे या से किं तं नोइंदियजवणिज्जे? सुया! निरुवहयाइं वसे वटंति, से तं इंदियजवणिज्जा३ हे भगवन् !. यात्रा क्या है? जीवों की यतना (रक्षा) करना हमारी यात्रा है। यापनीय क्या है? इन्द्रिय और नोइन्द्रिय यापनीय है इन्द्रिय यापनीय किसे कहते हैं? बिना किसी उपद्रव के वशीभूत जो इन्द्रियाँ होती हैं वे इन्द्रिय यापनीय हैं। ... इसका अंतिम उपसंहार भी कथोपकथन से परिपूर्ण है। छठे तुम्बक नामक अध्ययन में प्रश्न किया गया है- कहं णं भंते। जीवा गुरुयत्तं वा लहुयत्तं वा हव्वमागच्छंति?४ कैसे जीव मुरुता और लघुता को प्राप्त होते हैं? इस प्रश्न का समाधान तुम्बक पर लगाए गए लेप को गुरुता का प्रतीक और लेप रहित तुम्बक को लघुता का प्रतीक बताकर प्रस्तुत किया गया है जो कर्म-प्रकृतियों की लघुता और गुरुता को स्पष्ट करता है। 1. ज्ञाताधर्मकथा, 4/13. 2. वही, 5/36. 3. वही, 5/45. 4. वही, 6/5, 7. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org