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________________ प्राकृत भाषाओं का भाषागत वैशिष्ट्य पालि, मागधी, अर्द्धमागधी, शौरसेनी, महाराष्ट्री, पैशाची, चूलिका पैशाची और अपभ्रंश आदि प्राकृत भाषाओं के इन प्रमुख भेदों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है - - १. पालि भाषा पालि बौद्ध-त्रिपिटकों एवं सम्बद्ध ग्रन्थों की मूल भाषा है। पालि भी प्राकृत भाषा का ही एक रूप (भेद) है, जिसे गौतमबुद्ध ने अपने उपदेश का माध्यम बनाया था। तत्कालीन प्रचलित अनेक बोलियों के मिश्रण से पालि भाषा का गठन हुआ, जिनमें मागधी प्रमुख थी। इसलिए कुछ विद्वान् इसे मागधी से विकसित मानते हैं। मागधी और पैशाची प्राकृतों से पालि की पर्याप्त समानता भी है, इनकी कतिपय भी प्रवृत्तियाँ पालि में उपलब्ध होती हैं। पालि का छान्दस के साथ भी पर्याप्त साम्य है | इसलिए इसे साहित्यिक प्राकृतों में सर्वाधिक प्राचीन भी माना जा सकता है। पालि में मध्यदेशीय भाषा शौरसेनी प्राकृत की प्रवृत्तियां भी मिलती हैं। यह प्रभावशाली मध्यदेश की भाषा ही पालि का आधार है। मथुरा, अवंती, कौशाम्बी, कन्नौज, कौशल आदि स्थानों की बोलियों का प्रभाव भी पालि भाषा में देखने को मिलता है। इससे स्पष्ट है कि यह भी एक लोकभाषा रही है। पालि में बौद्धों का विपुल साहित्य उपलब्ध है। इसीलिए मुख्यतया यह बौद्ध साहित्य तक ही सीमित देखी जाती है। यह भी एक आश्चर्य का विषय है कि सम्राट अशोक प्रायः बौद्धधर्म का समर्थक माना जाता है फिर भी उसने अपने शताधिक शिलालेख आदि पालि भाषा में न लिखवाकर प्राकृत भाषा एवं ब्राह्मीलिपि में लिखवाये। इससे स्पष्ट है कि प्राकृत जनभाषा के पद पर प्रतिष्ठित राजमान्य लोकप्रिय भाषा बनी हुई थी। Jain Education International ५२ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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