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________________ २. ॠवर्ण के स्थान पर विभिन्न स्वरों (अ आ इ उ ए ओ रि) का प्रयोग। यथा तृणम् > तणं, ऋषि > इसी प्रवृत्ति > पउत्ती आदि । ३. ऐ के स्थान पर ए और अइ एवं औ के स्थान पर ओ का प्रयोग। जैसे ऐरावणः > एरावणो, दैन्यः > दइच्चो, कौमुदी > कोमुई, सौवर्णिकम् > सुवण्णिओ, कौरवः > कउरवो ४. आदिश, ष, स के स्थान पर 'स' का प्रयोग। आदि य का ज में परिवर्तन । यथा 4 ५. युवराज > जुवराय । ६. शब्द के मध्यस्थान में प्रयुक्त असंयुक्त क, ग, च, ज, त, द, प, य और व का प्रायः लोप । यथा रिपुः > रिऊ, लावण्यम् > लायण्णं, लोकः > लोओ, नगरम् > नयरः, आचारः > आयारो, गजः > गओ, लता लया, कदली > कली, विचार > विआर आदि । ७. असुयंक्त मध्य ख, घ, थ, ध, फ और भ का प्रायः ह में परिवर्तन । यथा - मुख > मुंह, जघन > जहन, शपथ > सबह, बधिर > बहिर, मुक्ताफल मुक्ताहल, सभा > सहा आदि । ८. न के स्थान पर ण का प्रयोग यथा वदनं > वयणं, वनम् > वणं। यथा ९. हलन्त पदों का अभाव और पदान्त व्यंजनों का प्रायः लोप । - - पश्चात् का पच्छा, तस्मात् का तम्हा आदि । Jain Education International - १०. संयुक्त व्यंजनों का समानीकरण । यथा पूर्व > पुव्व, रत्नम् > रयणं। ११. विसर्ग के स्थान पर ए या ओ का प्रयोग । १२. द्विवचन का लोप तथा षष्ठी और चतुर्थी विभक्ति का परस्पर एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग । १३. धातु रूपों में कमी तथा सरलीकरण । ५१ For Personal & Private Use Only शक्रः > सक्को, www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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