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________________ ग्रन्थ की रचना की है। षट्खण्डागम की धवला टीका के कर्ता आचार्य वीरसेन ने भी अज्ञातकर्तृक पद्यात्मक व्याकरण के सूत्रों का उल्लेख किया है। इस तरह प्राकृत व्याकरण पर अनेक ग्रन्थों की रचना आचार्यों द्वारा की गई है। बीसवीं शताब्दी के विद्वानों में पण्डितरत्न श्री प्यारचंद जी म. सा., पण्डित बेचरदास, डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री, युवाचार्य महाप्रज्ञ, डॉ. के. आर. चन्द्र, डॉ. कमलचन्द सौगानी, डॉ. प्रेमसुमन जैन, डॉ. सुदर्शन लाल जैन, डॉ. उदयचन्द्र जैन आदि अनेक विद्वानों ने प्राकृत व्याकरण विषयक अनेक ग्रन्थों का निर्माण कर प्राकृत भाषा के अध्ययन के प्रचार-प्रसार में बहुमूल्य सहयोग किया है। प्रो. कमलचन्द सौगानी जी के निर्देशन में अपभ्रंश भाषा अकादमी, जयपुर से सम्बद्ध अनेक विद्वानों एवं विदुषियों ने भी प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषा के व्याकरण ग्रन्थों का प्रणयन कर इस विषयक साहित्य परम्परा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। " प्राकृत भाषा की भाषागत प्रमुख विशेषतायें यद्यपि प्राकृत भाषा के अनेक भेद-प्रभेद हैं, किन्तु सभी प्राकृत भाषाओं में प्रायः एक सामान्य प्रवृत्ति भी दिखलाई देती है, जो इसे अन्य प्राकृतेतर भाषाओं से अलग करती है। इस सामान्य प्राकृत को बाद में महाराष्ट्री प्राकृत भी कहा गया है। सामान्य प्राकृत की प्रमुख विशेषतायें १. प्राकृत में प्रायः संस्कृत भाषा के सभी स्वरों का अन्य दूसरे स्वरों में परिवर्तन होता है। जैसे हस्व स्वरों का दीर्धीकरण, दीर्घ स्वरों का हस्वीकरण, स्वरों का लोप एवं सम्प्रसारण आदि। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004257
Book TitlePrakrit Bhasha Vimarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPhoolchand Jain Premi
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year2013
Total Pages160
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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